Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
जैनदर्शन में कारणवाद और पंचसमवाय ३३ किया गया है। चूंकि परिणमन का कर्ता उपादान है अतः यहाँ उपादान के लिए कर्ता
आया है। धवला(१२/४) में 'समर्थ कारण' और स्वयंभूस्तोत्र में 'मूलहेतु' शब्दों का उल्लेख उपादान के लिए प्राप्त होता है। निमित्त कारण की अपेक्षा उपादान को नैमित्तिक भी कहा जाता है।
कार्य की उत्पत्ति का नियामक कारण उपादान होता है क्योंकि कार्य की उत्पत्ति उपादान कारण के अनुसार होती है। जैसे- यव बोने पर यव ही उत्पन्न होते हैं। यहाँ कार्य की उत्पत्ति का जो कारण कहा गया है वह समर्थ कारण ही है। समर्थ कारण उपादान कारण को कहते हैं, अत: उपादान कारण के अनुसार ही कार्य होता है। ऐसा बृहत्द्रव्यसंग्रह टीका में कहा गया है
"उपादानकारणसदृशं कार्यमिति वचनात् । निमित्त कारण- आचार्य विद्यानन्दि (७७५-८४० ई. शती) ने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में सहकारी कारण यानी निमित्त कारण का लक्षण करते हुए लिखा है
'यदनन्तरं हि यदवश्यं भवति तत्तस्य सहकारिकारणम्
अर्थात् जो जिसके अनन्तर नियम से होता है, वह उसका सहकारी कारण है। इस प्रकार सहकारी यानी निमित्त कारण की कार्यकारिता सिद्ध है कि वह कार्य निमित्त के सद्भाव में ही होता है, उसके अभाव में कभी नहीं होता है। निमित्त कारण स्वयं कार्यरूप में परिणमित नहीं होकर कार्य की निष्पत्ति में सहयोगी बनता है। जैसेघड़े की उत्पत्ति में कुम्भकार, दण्ड, चक्रादि। सर्वार्थसिद्धि में प्रत्यय, कारण तथा निमित्त को एकार्थवाची कहा है
प्रत्यय: कारणं निमित्तमित्यनर्थान्तरम् सर्वार्थसिद्धि में निमित्त, कारण, प्रत्यय, हेतु, साधन, आश्रय, आलम्बन, अनुग्राहक, हेतुकर्ता, प्रेरक, राजवार्तिक में कारण, हेतु, समयसार में हेतु, उत्पादक, कर्ता, प्रवचनसार में कारण, हेतु तथा पंचाध्यायी में हेतुमत, अभिव्यंजक व उपकारी शब्द निमित्त कारण के लिए प्रयुक्त हुए हैं। २ जैन-तत्त्व-मीमांसा में बंधक परिणाम, उपकारक, सहायक, आधार निमित्त, आश्रय निमित्त, उदासीन निमित्त आदि पर्यायवाची नामों का भी उल्लेख प्राप्त होता है। आचार्य अमृतचन्द्र ने निमित्त के लिए कारण, हेतु, निमित्तकर्ता, हेतुकर्ता, बहिरंग साधन, उदासीन कारण, आश्रयकारण, उदासीन हेतु, निमित्तमात्र आदि शब्दों का प्रयोग किया है। इस प्रकार विभिन्न ग्रन्थों में निमित्त के लिए विभिन्न पर्यायवाची शब्दों के प्रयोग देखे जाते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org