Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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कालवाद ७९ एतदेव दर्शयितुमीश्वरः सृष्ट्यादितेन निमित्तभूतेन करोतीत्याह। कालेन निमित्तेन चासृजदित्येतावदेव विवक्षितम्।। ३३
विष्णु माया से युक्त ब्रह्म काल के निमित्त से ईश्वर के द्वारा विश्व के रूप में प्रकाशित किया जाता है। काल के निमित्त से होने वाली प्राकृत व वैकृत सृष्टि के ९ भेद हैं। जिसमें महत्, अहंकार, भूत सर्ग, ऐन्द्रिय सर्ग, मनस्सर्ग, तमस्सर्ग, स्थावर सर्ग, तिर्यक् सर्ग और मानव सर्ग आदि का समावेश होता है। महाभारत में कालवाद एवं उसका निरसन
महाभारत में काल की कारणता के संबंध में दो मत मिलते हैं। पहला मत जो काल को सभी कार्यों के प्रति निर्विशेष यानी सामान्य कारण तथा सभी प्राणियों में समान रूप से कारक मानता है- 'कालो हि कार्य प्रति निर्विशेषः', 'कालः सर्वेषु भूतेषु चरत्यविधृतः समः दूसरा मत जो सभी कार्यों के प्रति काल विशेष को ही कारण मानता है, अन्य को नहीं- 'सर्वे कालात्मकाः सर्व कालात्मकमिदं जगत्', 'कालो हि कुरुते भावान् सर्वलोके शुभाशभान'।३५ कालवाद का प्रसंग होने से यहाँ दूसरे मत का कथन ही विस्तार से अभिप्रेत है।
कारण और कार्य का पृथक्-पृथक् अस्तित्व होता है। इसलिए काल का कार्य से भिन्न स्वरूप होने से कार्य में निहित होना संभव नहीं है। महाभारत की निम्न पंक्ति यह प्रमाणित करती है- 'नाभ्येति कारणं कार्य न कार्य कारणं तथा, कार्याणां तूपकरणं कालो भवति हेतुमान्। ६ काल कार्य की सिद्धि और असिद्धि में समान रूप से कारण बनता है। लोक में हो रही चेष्टाएँ, प्रवृत्ति-निवृत्ति तथा विकृतियाँ सभी काल के निमित्त से हैं।२७ स्थावर-जंगम प्राणी सभी काल के अधीन हैं। सूर्य, चन्द्रमा, जल, वायु, इन्द्र, अग्नि, आकाश, पृथ्वी, मित्र, पर्जन्य, वसु, अदिति, नदी, समुद्र आदि सभी का कर्ता काल है।३८ वर्तमान में विद्यमान पदार्थ के प्रति ही नहीं, अपितु भविष्य और भूतकाल के पदार्थों के प्रति भी काल हेतु है। सृष्टिगत कार्यों के साथ-साथ काल स्वयं सृष्टि का रचनाकार और संहारकर्ता है। काल माता-पिता के समान प्राणियों का जनक होने के साथ संरक्षक भी है, अत: वह सबको पोषित एवं धारण करने वाला है। काल द्रव्योत्पत्ति में ही नहीं भाव में भी कारण है, जन्तुओं के सात्त्विक, राजसिक और तामसिक भाव भी कालात्मक हैं।
प्राकृतिक-परिवर्तन में भी काल कारणभूत होता है, इसके विभिन्न निदर्शन है, यथा- तेज हवा का चलना, मेघों द्वारा जल बरसाना, उदक में उत्पल का उत्पन्न होना, वन में वृक्षों का पुष्ट होना, चन्द्रमा का घटना-बढ़ना, वृक्षों का फल-फूलों से
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