Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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भुजाकारंगळ मूरवुवु । मत्तमा द्विप्रकृतिस्थानबंधक नप्पनिवृत्तिकरणं त्रिप्रकृतिस्थानमं कट्टिबोडों हु भुजाकारमक्कुमा द्विप्रकृतिस्थानबंधकं देवा संयतनागि द्विभंगयुत सप्तदशप्रकृतिस्थानम् कट्टिबोर्डर भुजाकारंगळ वितु द्विप्रकृतिस्थानबंधकनत्तणदं मूरु भुजाकारबंध भेवंगळप्पुवु । मत्तमेकप्रकृतिबंधकं द्विप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडों व भुजाकारमक्कु । मत्तमा एक प्रकृतिस्थानबंधकं मरणमादोर्ड देवासंयतनागि द्विभंगयुत सप्तदश प्रकृतिस्थानमं कट्टिदोर्डरड भुजाकारंगळप्पुवितु एकप्रकृतिस्थानबंधकणव भुजाकार भेदंगळ मूरप्पुवितनिवृत्तिकरणंगे भुजाकारबंधभेदंगळु पदिनेय्ववु १५ । इंतु सर्व्वं विशेषभुजाकारंगळ नूरिप्पत्तेळ १२७ । यितु पेळल्पट्ट नूरिप्पत्तळं भुजाकारदंधविशेषंगळु मिथ्यादृष्ट्यादिगुणस्थानं गळोळ इनितिनितप्पुर्व व संख्येयं पेवपरु :
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णभ चउवीसं बारस वीसं चउरट्ठवीस दो दो य । धूले पणगादीणं तिय तिय मिच्छादिभुजगारा || ४७२ ॥
नभश्चतुव्विशतिर्द्वादश विंशतिश्चतु रष्टविंशतिद्वद्वौ च । स्थूले पंचकादीनां त्रिक त्रिकं मिथ्यादृष्ट्यादि भुजाकाराः ॥
मिथ्यादृष्टघादियागनिवृत्तिकरणपर्यंत विशेषभुजाकारंगळ क्तंगळ क्रमदिदं पेळल्पडुबल्लि मिथ्यादृष्टियो शून्यमक्कुमेर्क दोडा मिथ्यादृष्टि कट्टुव मोहनीयप्रकृतिबंधस्थानं द्वाविंशति प्रकृतिस्थानमल्लदे मेलधिकप्रकृतिबंधस्थानमिल्लप्पुर्दारदं । सासादनंगे चतुव्विशतिभुजाकारं गळवु । २४ । मिश्र द्वादशभुजाकारंगळप्पु ॥ १२ ॥ असंयतंर्ग विशतिभुजाकारंगळवु २० । देश.
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भंगसप्तदशकेन द्वौ, त्रिकस्य चतुष्केणैकः, देवा संयताद्विभंगसप्तदशकेन द्वौ द्विकस्यैकभंग त्रिवेणैकः देवासंयतद्विभंगस दशकेन द्वौ, एकस्यैकभंगद्विकेनैकः, देवासंयतद्विभंगससदशकेन द्वौ मिलित्वा सप्तविंशत्यग्रशतं ।।४७१ ।। तानेबाह—
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विशेष भुजाकाराः मिथ्यादृष्टौ शून्यं । सासादने चतुर्विंशतिः । मिश्र द्वादश । असंयते विशतिः । सतरहके बन्धके दो प्रकार हैं । अतः दो भुजाकार हुए। इस तरह तीन हुए। दूसरे भाग में चारका बन्ध | वहांसे प्रथम भाग में आकर पाँचका बन्ध करे तो उसकी अपेक्षा एक भुजाकार है । यदि मरकर देव असंयत हो तो वहां सतरह के बन्धके दो प्रकार हैं। अतः दो भुजाकार होनेसे सब तीन हुए ।
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इसी प्रकार तीसरे भाग में तीनका बन्ध । वहाँसे दूसरे भाग में आकर चारका बन्ध करे तो एक भुजाकार । मरकर देव असंयत हो तो उसकी अपेक्षा दो। इस प्रकार तीन हुए । चौथे भाग दोका बन्ध । वहाँसे तीसरे भाग में आकर तीनका बन्ध करनेपर एक भुजाकार | देव असंयत हो सतरहका बन्ध करनेपर दो, ऐसे तीन हुए । पाँचवें भाग में एकका बन्ध । वहाँसे चौथे भाग में आकर दोका बन्ध करनेपर एक । अथवा देव असंयत होकर सतरहका बन्ध करनेपर दो, इस प्रकार तीन भुजाकार हुए। सब मिलकर भुजाकार बन्ध एक सौ सत्ताईस होते हैं || ४७१।।
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आगे उन्हीं को कहते हैं
मंगों की अपेक्षा विशेष भुजाकार मिध्यादृष्टिमें शून्य, सासादन में चौबीस,
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