Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
अस्तनपंक्ति एक अष्ट अष्ट एक अष्ट एक एक एक एक एकभेदे भेदंगळतुळ भंगंगळमुळ अष्ट अष्ट अष्ट नव नव विंशतिगळं त्रिशत् एक एक एक एक स्थानंगळो परितन पंक्तिय अ एक एक अष्ट एक एक एक एक एक एक भयंगळमुळ ओ दुर्गादियुं ख एक ख एक त त्रिशत्प्रकृतिस्थानं गळं एकत्रिशत्प्रकृतिस्थानमुं देवचतुःस्थानंगळं क्रमदिदमप्पुवप्पु दरिवमप्रमादरु५ गोळ नालवत्तरदे भुजाकारबंधभंगंगळवु । ई भुजाकारंगळभिप्रायं पेळल्पडुगुमदे ते बोडे अप्रमत्त
भंगयुत देवगतियुताष्टाविंशतिस्थानमं कट्टुत्तं प्रमत्तनागि तोथंबंधमं प्रारंभिसि सतीर्थदेवगतियुत स्थानमनष्टभंगयुतमागि कट्टुगुं । ८ । मत्तं पमत्तसंयतनष्टभंगयुताष्टाविंशतिस्थानमं कट्टुत्तमप्रमत्तनागि देव गत्याहारद्वय युत त्रिशत्प्रकृतिस्थानमनेकभंगयुतमागि कट्टुगुं । ८ ॥ मत्तं प्रमत्तगुणस्थानदो देवगतियुताष्टाविंशतिस्थानमनष्टभंगयुतमं कट्टुत्तमप्रमत्तनागि तोर्त्याहार१० द्वययुतैकत्रशत्प्रकृतिस्थानमनेकभंगयुतमागि कट्टुगुं । ८ ॥ मत्तमप्रमत्तसंयतं तीर्थदेवगतिश्रुतनवविंशतिस्थानमं कटुत्तं मरणमादोडे देवासंयतनागि मनुष्यगतितीर्थंयुत त्रिशत्प्रकृतिस्थानमनष्टभंगयुतमागि कट्टुगुं । ८ ॥ मत्तं प्रमत्तगुणस्थानदोळ तीर्थदेवगतियुतनर्वाविंशतिस्थानमनष्टभंगत कट्टुत्तमप्रमत्तगुणस्थानमं पोद्दि तोर्त्याहारद्वययुतै कत्रिशत्प्रकृतिस्थानमनेकभंगयुतमागि
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अघस्तनपंक्तेरेकाष्टाष्टकाष्टकै कै कै कै कभंगाष्टाष्टाष्टन जनवविंशतित्रिंशदेकै कै कै क प्रकृतिकेषु उपरितनपंके१५ रष्टे के काष्टके के केके के कध को नख कखे कयुतत्रिंशत्कान्येकत्रिशत्कं देवचतुःस्थानानि च क्रमेणेति पंचचत्वारिंश
द्भवन्ति । तद्यथा -
अप्रमत्तः देवगत्येकधाष्टाविंशतिकं बध्नन् प्रमत्ते गत्वा तीर्थबन्धं प्रारभ्य सतीर्थाष्टघादेवगतिनवविंशतिकं नातीत्यष्टी । पुनः प्रमत्तोऽष्टषाष्टाविंशतिकं बध्नन्नप्रमत्तो भूत्वा देवगत्याहारकद्वययुतकधात्रिंशत्कं बनातीत्यष्टौ । पुनः प्रमत्तोऽष्टधाष्टाविंशतिकं बध्नन्नप्रमत्ता भूत्वैकधातीर्थाहारैकत्रिशत्कं बध्नातीत्यष्टौ । पुनरप्रमत्तः २० तीर्थदेवगतिनवविंशतिकं बध्नन्मृत्वा देवासंयतो भूत्वाष्टषा मनुष्यगतितीर्थत्रिशत्कं बध्नातीत्यष्टौ । पुनः प्रमत्तः
नीचेकी पंक्तिके एक आठ आठ एक आठ एक एक एक एक एक भंग सहित अठाईस अठाईस अठाईस उनतीस उनतीस तीस इकतीस इकतीस इकतीस इकतीस रूप स्थानों को बाँधकर ऊपरकी पंक्तिके आठ एक एक आठ एक एक एक एक एक एक भंग सहित उनतीस तीस इकतीस तीस इकतीस इकतीस और देवगति सहित चार स्थानोंको क्रमसे बाँधे । तो २५ एक एक ऊपर की पंक्तिके स्थान भंगोंसे एक एक नीचेकी पंक्तिके स्थान भंगोंको गुणा करनेपर सब पैंतालीस भुजाकार होते हैं । वही कहते हैं
अप्रमत्त गुणस्थानवाला एक भंग सहित देवगतियुक्त अठाईसका बन्ध करके, प्रमत्त गुणस्थान में जाकर तीर्थंकरके बन्धका प्रारम्भ करके, तीर्थंकर देवगति सहित उनतीसको आठ भंग सहित बांधे तो उन दोनोंके भंगोंको परस्पर में गुणा करनेपर आठ हुए। पुनः प्रमत्त ३० गुणस्थानवर्ती आठ भंग सहित देवगतियुत अठाईसको बांधकर अप्रमत्त होकर देवगति आहारक द्विक सहित तीसको एक भंगके साथ बाँधे तो आठ भंग हुए। पुनः प्रमत्त आठ भंग सहित अठाईसको बाँध अप्रमत्त होकर तीर्थंकर आहारक सहित इकतीसको एक भंगके साथ बाँधे तो आठ भंग हुए। पुनः अप्रमत्त तीर्थंकर देवगति सहित उनतीसको एक भंगके साथ बाँधकर मरकर देव असंयत होकर आठ भंग सहित मनुष्यगति तीर्थंकर सहित तीसको बाँधे
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