Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
क्षे ३। द्विगु ३ । क्षे २। त्रिगु २॥ अंतु सासादनंगे गुण्यभंगंगळ २०४ । गु ६ ।क्षे ५। लब्ध भंगंगळ, १२२९ । मत्तं चक्षुरूनसासादनंगे | मि | औ । पा | प्रक्षे १ । द्विगु १।क्षे १ त्रि ग १ ।
।८। ७ | भ । अंतु गुण्य १२॥ गु२ क्षे२। लब्ध भंगंगळ २६ । उभयसासादन भंगंगळु १२५५। मिश्रगेमि औपा |
प्र गु १।क्षे ३ । द्वि गु ३ । क्षे २। त्रि गु २ । अंतु मिश्रंगे पूर्वोक्त गुण्य भंगंगळ १८० । गु ६ । ५ मे ५। लब्ध गंगळ १०८५ । असंयतंगे| उ | मि | औ | पा | प्र गु १। क्ष ४। द्वि गु ४।
|१|१२|७ । भ । १० ।
सासादने- मि । औ । पा । अत्र प्र गु १ क्षे ३, द्वि गु ३ क्षे २, वि गु २, मिलित्वा गुण्यं
२०४ । गु ६ क्षे ५ भंगाः १२२९ । पुनश्चतरूने | मि ।
। ८ ।
अत्र प्रक्षे १ द्विगु १ क्षे १ त्रिगु
। | भ
७
१ मिलित्वा गुण्यं १२ । गु २ क्षे २ भंगा २६ उभये १२५५ ।
मिश्र- मि । यो । पा | प्रगु १ क्षे ३ । द्विगु ३ क्षे २ । त्रिगु २ मिलित्वा गुण्यं १८० गु ६
। ९ । १० से ५ भंगाः १०८५ ।
सासादनमें मिश्रके दस और नौके दो स्थान; औदयिकका सातका एक स्थान, पारिणामिकका भव्यरूप एक स्थान, ऐसे चार स्थान हैं। उनमें प्रत्येक भंगोंमें एक गुणकार तीन क्षेप हैं । दो संयोगीमें गुणकार तीन क्षेप दो, तीन संयोगीमें गुणकार दो। सब मिलकर गुणकार छह और क्षेप पाँच हुए। गुण्य दो सौ चारसे गुणा करनेपर बारह सौ उनतीस भंग हुए। चक्षुदर्शन रहित सासादनमें मिश्रका आठका स्थान, औदायिकका सातका स्थान, पारिणामिकका एक भव्यका स्थान ये तीन स्थान हैं। प्रत्येक भंगमें एक क्षेप है । शेष पुनरुक्त हैं। दो संयोगीमें गुणकार एक क्षेप एक, त्रिसंयोगीमें गुणकार एक मिलकर दो गुणकार हुए दो क्षेप हुए । गुण्य पूर्वोक्त बारहमें गुणा करनेसे सब भंग छब्बीस हुए। दोनों मिलानेपर
सासादनमें सब भंग बारह सौ पचपन होते हैं। मिश्र गुणस्थानमें मिश्रके ग्यारह और नौके २० दो, औदयिकका सातका एक और पारिणामिकका एक भव्य ऐसे चार स्थान हैं। प्रत्येक
भंगमें गुणकार एक, क्षेप तीन, दो संयोगीमें गुणकार तीन क्षेप दो, तीन संयोगीमें दो गुणकार, सब मिलकर छह गुणकार और पाँच क्षेप हुए। पूर्वोक्त गुण्य एक सौ अस्सीको छहसे गुणा करके, पाँच जोड़नेपर सर्व भंग एक हजार पचासी होते हैं।
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