Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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यितायुर्व्वजित सप्तकम् मंगळगमिर्त स्थितिनिषेकरचनाविरचनं प्रतिसमयमुमप्पुर्व वरियल्पडुगुमिल्लि मूलप्रकृतिगळ्गमुत्तरप्रकृतिगळगं स्थितिनिषेकरचनाकरणवो एक गुणहान्यायामादि सामग्रीविशेषमं पेळदपरु । :
सव्वासि पयडीणं णिसेयहारो य एयगुणहाणी ।
सरिसा हवंति णाणागुणहाणिसलाओ वोच्छामि ॥ ९३२ ॥ सर्व्वासां प्रकृतीनां निषेकहारश्चेकगुणहानिः । सदृशाः स्युर्नानागुणहानिशलाका वक्ष्यामि ॥
एवमायुविना सप्तकर्मणां स्थितिनिषेकरचना प्रतिसमयं स्यात् । किन्तु —
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उक्त संदृष्टि में प्रथम गुणहानिका आदि निषेक पाँच सौ बारह । मध्य निषेकोंके ग्रहण के लिए बिन्दी लिखीं । अन्तिम निषेक दो सौ अट्ठासी । मध्यकी गुणहानियोंवे निषेकोंको ग्रहण करनेके लिए बीच में बिन्दी लिखी हैं । अन्तिम गुणहानिका प्रथमं निषेक सोलह । १० बीके निषेकोंके लिए बिन्दी है । अन्तिम निषेक नौ। यह केवल अंकसंदृष्टि है ।
इस प्रकार मिथ्यात्वका कथन उत्कृष्ट स्थिति व उत्कृष्ट समयप्रबद्धकी अपेक्षा जानना । अन्यत्र जैसी जहाँ स्थिति और समयप्रबद्ध हो वैसा स्थिति और द्रव्यका प्रमाण जानना । दो गुणहानि और गुणहानि आयामका प्रमाण सर्वत्र समान है । नानागुणहानि अन्योन्याभ्यस्त राशि स्थिति के अनुसार जानना ||९३१॥
वही कहते हैं
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