Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 707
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १३३५ वो मूरु राशिगळोळ मध्यमप्रथमऋणराशियं शतषट्कहारंगळं रूपाधिकत्रिगुणहानियं माडि चतुष्कर्म द्विदिवं गुणिसिगुणहानियनुत्पादिसियपत्तिसिदोडितिक्कु स ० ८।५।८ मी राशि ८।३। ३ योलिई ऋणरूपधनमदु तेगेदु पाश्र्वदोळ स्थापिसिदोडिदु स०।८।५।८। स ।। ४।५।१ - - ८।३।३ ८.३।३ ई एरडु राशिगळ मेलिई द्विरूपं तंतम्म केळगे स्थापिसि : | सामा५।८।स।।५।१। ८।३।३।८।३।३ स ।२।८।स ।२।१ १३।३।८।३।३ प्रथमद्विकर्म कळगेयु मेगेयु त्रिगुणिसि स ३।६। ८ अल्लि पंचरूपुगळं तेगेदु मेलण ऋणदोलिक्कि ५ ८।३।३।३ स।।८।३।५। ८ अपत्तिसिबोडिनितक्कु स ।८।५ शेयकऋणरूपं स ।।८।१ उपरि ८३।३।३ ८।३।३।३ प्रथमर्णस्य हारं शतषट्करूपाधिकत्रिगुणगुणहानि कृत्वा चतुष्कं द्वाभ्यां संगुण्य गुणहानिमुत्पाद्यापवर्त्य स । ।।८।५।८। अवस्थमृणरूपं धनमित्यपनीय पार्वे संस्थाप्य स ।८।५। ८ स । ।८।५ ८।३।३ ८।३।३ ८।३।३ उभयत्र स्थितरूपद्वयं स्वस्वाधः संस्थाप्य स ।८।५।८ स।।८।५ प्रथमद्विकमपर्यधस्त्रिभिः ८।३।३ सव।२ ८।३।३ स।व।२ ८।३।३ ८।३।३ पंचरूपाण्यपनीयउपरितनर्णमध्ये निक्षिप्य स। ।८।३।५।८ १० संगुण्य स । ।६।८ ८।३।३ । ३ ८।३।३।३ प्रमाण दूसरा ऋण हआ। सो अन्तका धन आठ गणा सौ है उसे नानागणहानि छहसे गणा करनेपर अड़तालीस सौ हुए। इन दोनों ऋणोंको जोड़नेपर कुछ अधिक आधी गुणहानिसे गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण हुआ। सो उनतीस हजार चार सौ छियानबे हुआ। क्योंकि For Private & Personal Use Only Jain Education Internatioक-१६८ www.jainelibrary.org

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