Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 796
________________ गो० कर्मकाण्डे यहाँ एक अनुभाग काण्डक द्वारा जितना अनुभाग घटाया गया उसका नाम अनुभाग कांडक आयाम है । पुनः नाश करने योग्य स्पर्धकोंके सर्व परमाणुओंको ग्रहण कर अनुभाग काण्डकके प्रथम समय में जितनी परमाण राशि अवशेष स्पर्धकों में मिलायी उसका नाम प्रथम फालि है । द्वितीय समय जो मिलायी गयी उसका नाम द्वितीय फालि है । इत्यादि क्रम है। इस प्रकार एक काण्डककी समाप्ति कर अन्य काण्डका प्रारम्भ होता है। इस तरह अनेक अनुभाग काण्डकों द्वारा अनुभाग घटाते हैं। जहाँ विशुद्धता बहुत होती है यहाँ अन्तर्मुहूर्त में होता था जो काण्डकघात उसके अनुभाग का समापवर्तन होता है वहीं समय-समय प्रति अनन्त गुणे क्रमसे अनुभाग घटाते हैं। पूर्व समय में जो अनुभाग था, उसमें अनन्तका भाग देनेसे प्राप्त बहभागका नाश कर एक भाग मात्र अनुभाग अवशेष रखते हैं। इस प्रकार समय-समय प्रति अनुभागका घटाना होनेसे इसका नाम अनुसयापवर्तन है [ काण्डक पोरको कहते हैं। कुछ अनुभाग के हिस्से करके, एक-एक हिस्सेका फालिक्रमसे अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा अभाव करना अनुभाग काण्टक घात है। प्रतिसमय अनन्त बहुभाग अनुभागका अभाव करना अनुसमयापवर्तन है । ] १४२४ संज्वलन कषाय में अनुभाग घटनेके क्रमसे अपूर्व स्पर्धक रचना और बादर कृष्टि रचना होती है । संज्वलन लोभमें सूक्ष्म कृष्टि रचना होती है। सर्वत्र स्तोक अनुभाग युक्तकी रचना नीचे होती है और बढ़ती अनुभाग रचना ऊपर होती है। उसकी अपेक्षा स्पर्धकोंकी कृष्टियोंको नीचे ऊपर कहते हैं। इस क्रमसे अप्रशस्त प्रकृतियोंके अनुभाग सरबका नाश होता है। प्रकृति सरवका नाश होनेपर सर्वथा उनके अनुभाग सत्त्वका नाश होता है । प्रशस्त प्रकृतियोंका काण्डकादि विधानसे अनुभाग सत्त्वका नाश करते हैं । प्रकृति सत्त्वके साथ उनके अनुभाग सत्त्वका नाश जानना चाहिए। इस क्रमसे निर्जराका विधान है । प्रयोजित संज्ञाएँ कर्म प्रकृतियोंके कथनमें उनके परमाणुओंका नाम इव्य है । बन्धरूप परमाणुओंका नाम बम्ध द्रव्य है। सत्त्व रूप परमाणुओंका नाम सत्व द्रव्य है। स्थिति काण्डकके नियेकोंके परमाणुओंका नाम काण्डक द्रव्य है । यहाँ प्रथमादि फालियोंके परमाणुओंका नाम प्रथमादि फाकि द्रश्य है। ऊपरके वा नीचेके निषेक छोड़कर बीच कितने एक निषेकोंका अभाव करनेरूप अन्तरकरण होता है। वहीं अभाव करने रूप निषेकोंके परमाणुओंका नाम अन्तरकरण दृश्य है। उदय आने के अयोग्य किये परमाणुओंका नाम उपशम द्रव्य है। विवक्षित सत्ता रूप निषेक थे, उनमें नवीन मिलाये गये परमाणुओं को दीवमान दृष्य कहते हैं सत्तारूप थीं, उनमें नवीन परमाणुओंके मिलने पर जो सर्वपरमाणुओं का समूह बना उसे दृश्यमान हुन्य कहते हैं (?) । काण्डका नाम पर्व ( पोरा ) भी है । जिस प्रकार गन्नेको पेरा जाता है उसी प्रकार मर्यादारूप स्थानका नाम पर्व है । जिस प्रकार स्थिति में घटनेका मर्यादारूप स्थान होता है, उसका नाम स्थिति काण्डक है । अनुभाग में भी घटनेका मर्यादा रूप स्थान होता है, उसका नाम अनुभाग काण्डक है। अनन्तानुबन्धीकी स्थितिमें चार स्थान ही चार पर्व कहे जाते हैं। पुनः अपकृष्ट द्रव्यके मिलाने के जहाँ तीन स्थान है वहाँ तीन पर्व कहे जाते हैं । आयाम का दूसरा नाम लम्बाई है जो युगपत्से भिन्न कालके प्रमाणकी संज्ञा रूप है । कहीं ऊपरऊपर रचना होती है वहाँ उनके प्रमाण में भी आयाम संज्ञा होती है । जैसे, स्थितिके प्रमाणका नाम स्थिि आयाम है। स्थिति काण्डकके निषेकोंके प्रमाणका नाम स्थिति काण्डक आयाम है। अन्तरकरणमें जितने निषेकका अभाव किया गया हो उसका नाम अन्तरायाम है । गुणश्रेणिके निषेकोंके प्रमाणका नाम गुणश्रेणि आयाम है | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828