Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
इस प्रकार एक-एक चय घटाते हुए एक कम आवली प्रमाण चय प्रथमनिषेकमें से घटानेपर अन्तिम = प्रथम निषेक - चंय ( आवली - १ )
निषेक
१४३६
( स ० ३– ) ( २ गु)
(७) (४) ( उ
)
(50 121-1) स a
__ ( स ३ गु - ) [ २ गु - ( म - - १ ) ]
(७) (४) (3) (2) (@' ) (आ) (२ गु -
—
प
(7) ( श्रं' 9 ) ( आ ) [ २ गु—
( ७ ) । ४ ) ( उ ) (7) (:अॅ ० ) ( आ ) [ २ गु – ( आ - १ ) ]
—
- होता है ।
( स ३ गुः - ) ( a- १ )
अब गुणश्रेणि बायाम अन्तर्मुहूर्त मात्र जिसमें दिया गया द्रव्य (७) (४) (उ) (4) ( 8 )
= ( स ० गु - ) ( श्रे ३ - १ ) ( (१) )
(७) (४) (3)
(4)
((८५))
इसी प्रकार अन्तिम निषेक
है। इसको समय प्रतिसमय असंख्यात से गुणित करनेपर निषेक रचना निम्न प्रकार होती है। यहाँ असंख्याततीसरे समय (१६), अन्त समय ( ६४ ) बँटनेपर निषेकोंका प्रमाण निम्न रूपमें
),
की संदृष्टि (४) करने पर प्रथम समय शलाका (१), दूसरे समय ( ४ होती है, जिन सभीका योग (८५) होता है। इस प्रकार समानुपात में होता है
प्रथम निषेक
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श्र.
( स ३गु - ) ( a- १) ( ( ६४ ) )
=
(0) (x) (3) (—) (+3 3) ( (<4) )
-
आ
(-1)
२
3
आ - १
२
होता है । यहाँ अन्तर्मुहूर्त के भेदोंमें जघन्य अन्तर्मुहूर्त आ १ है जिससे संख्यात गुणा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त आ ११ होता है । इसके ऊपर एक समय और जोड़नेपर समस्त १ ) + १ होता है।
आ
होता है। दोनोंका अन्तर आ १३ अन्तर्मुहूतोंके भेदोंका प्रमाण आ १ (१
इस प्रकार गणितके रूपको भलीभाँति समझकर लब्धिसार ग्रन्थ में प्रवेश करना लाभप्रद होगा । उपरोक्त सामग्री गोम्मटसारादि ग्रन्थोंमें गति देने में समर्थ होगी ।
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प्रो० लक्ष्मीचन्द्र जैन प्राचार्य, शासकीय महाविद्यालय, सिहोरा (जबलपुर )
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