Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
१४२६
गो. कर्मकाण्डे
अधिकको अन्त मुहूर्त कहते हैं । दिवससे कुछ कमादिको अन्तदिवस कहते हैं। तीनके ऊपर और नौके नीचे प्रमाणका नाम पृथक्त्व है । दृष्टान्त अपेक्षा भी संज्ञाएँ होती हैं- जहाँ एक-एक चय घटते क्रममें निषेक पाये जाय वहाँ गोपुच्छ संज्ञा है। द्रव्य देने जहाँ ऊँटको पीठिवत् हीनाधिकपना हो वहाँ उष्ट्रकूट संज्ञा है । जहाँ समान पट्टिकाके आकारवत सर्वस्थानमें समान रचना हो वहाँ समपट्टिका संज्ञा है ।
___ कर्म स्थिति वा अनुभाग रचनाओंमें एक-से करणसूत्रोंका उपयोग होता है । आय और व्यय द्रव्योंके सम्बन्धमे भी संक्रिया (?) जानने योग्य है ।
करण सूत्रोको संप्रयुक्ति
नाना गुणहानिके सम्बन्धमें चय घटते हुए क्रमरूप द्रव्य के विभागका विधान है। सर्वप्रथम द्रव्य, स्थिति, गुणहानि, नानागुणहानि, दो गुणहानि और अन्योन्याभ्यस्त राशियोंका स्वरूप और प्रमाण जानना चाहिए। स्थिति रचनाके सम्बन्धमें यह उल्लेख है। विवक्षित समयमें ग्रहण किये समयप्रबद्ध प्रमाण परमाणु राशिका द्रव्य कहते हैं । उसकी आबाधा रहित स्थिति बन्धके समय राशिका प्रमाण है वह स्थिति है। वहाँ एक गणहानिमें निषेकोंकी राशि प्रमाणको गुणहानि आयाम कहते है। स्थितिमें गुणहानियोंके प्रमाणको नानागुणहानि कहते हैं। गुणहानि आयामसे दुगना प्रमाण दो गुणहानि कहलाता है। नाना गुणहानि मात्र दूवा ( २ के अंक ) विरलित कर, परस्पर गुणित करनेपर जो प्रमाण प्राप्त हो उसे अन्योन्याभ्यस्त राशि कहते हैं । उदाहरणार्थ-मिथ्यात्वका द्रव्य अपने समय प्रबद्ध मात्र है। स्थिति सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर है । स्थितिमें नानागुणहानिका भाग देनेपर जो प्रमाण प्राप्त हो वह गुणहानि आयाम है। पल्यके अर्द्धच्छेदोमें-से पल्यकी वर्गशलाकाके अर्द्धच्छेद घटानेपर जो प्रमाण प्राप्त हो वह नानागुणहानि है। गुणहानि आयामसे दूना निषेकहार है। पल्यमें पल्यकी वर्गशलाकाओंका भाग देनेपर जो प्राप्त हो वह अन्योन्याभ्यस्त राशि (?) है। इसी प्रकार अन्य प्रकृतियोंका विवरण है।
____ अनुभाग रचनाके सम्बन्धमें विवक्षित कर्म प्रकृतिके परमाणुओंका प्रमाण द्रव्य है। सर्व वर्गणाओंका जो प्रमाण है वह स्थिति है। एक गुणहानिमें वर्गणाओंके प्रमाणको गुणहानि आयाम कहते हैं। स्थितिमें गुणहानियोंके प्रमाणको नानागुणहानि कहते हैं। दूना गुणहानि मात्र निषेकहार है । नाना गुणहानि मात्र
वोंको विरलित कर परस्पर गुणित करनेपर अन्योन्याभ्यस्त राशि प्राप्त होती हैं। इन छहोंका प्रमाण हीनाधिकपन लिये अनन्त प्रमाण है।
काण्डकादि द्रव्य ग्रहण कर यथायोग्य निषेकोंमें निक्षेपण करने सम्बन्धी निम्नप्रकार है। जितना द्रव्य ग्रहण किया हो वह प्रमाण मात्र द्रव्य है। जितने निषेकोंमें देना हो उनका प्रमाण मात्र स्थिति है। गणहानिका प्रमाण बन्धकी स्थिति रचनामें जितना कहा उतना है। इसका भाग यहाँ सम्भव स्थितिमें देनेपर नानाणहानिका प्रमाण प्राप्त होता है। दूना गुणहानि मात्र निषेकहार है। नानागुणहानि मात्र दूवों (२ के अंकों) को विरलित कर परस्पर गुणित करनेपर अन्योन्याभ्यस्त राशि है।
उदाहरण : अंकसंदृष्टि अनुसार मान लो द्रव्य ६३००, स्थिति ४८, गुणहानि ८, नानागुणहानि ६, दो गुणहानि १६, अन्योन्याभ्यस्त राशि २ अथवा ६४ है । निषेकोंमें द्रव्यका प्रमाण लाने के लिए सूत्र, "दिवढगुणहानिभाजिदे पढमा" है। अर्थात सर्व द्रव्यमें साधिक डेढ गुणहानिका भाग देनेपर प्रथम निषेकका द्रव्य होता है । जैसे ६३०० में साधिक १२ का भाग देनेपर ५१२ होता है । पुनः, “तं दो गुणहाणिणा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org