Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 801
________________ गणितात्मक प्रणाली १४२९ शलाकाएं-ऐसे ही असंख्यात गुणा क्रम लिये उसके अन्तिम समय पयंतकी शलाकाएं जानना चाहिए। इसका नाम प्रक्षेपक है । इनको जोड़नेपर जो प्रमाण आवे उसका भाग उस सर्वद्रव्यको देनेपर जो प्रमाण हो उसके द्वारा अपनी अपनी शलाकाओंके प्रमाणको गुणित करनेपर गुणश्रेणी आयामके प्रथमादि समय सम्बन्धी निषेकोंमें द्रव्य देनेका प्रमाण आता है । इतना-इतना द्रव्य गणश्रेणी अायामके प्रथमादि निषेकोंमें मिलाना चाहिए। यह विधान गुणसंक्रममें भी जानना चाहिए। वहाँ जो गुणसंक्रमण कालके प्रथमादि समय सम्बन्धी एक आदि क्रमसे असंख्यातगुणी शलाकाएँ प्रक्षेपक हैं। जो गुणसंक्रमण द्वारा अन्य प्रकृति रूप परिणमावने योग्य सर्वद्रव्य मिश्रपिण्ड है । प्रक्षेपकोंके जोड़का भाग मिश्रपिण्डमें देकर लब्ध द्वारा अपनी अपनी शलाकाओंको गणित करने पर संक्रमणकालके प्रथमादि समयोंमें अन्य प्रकृतिरूप परिणमावने योग्य द्रव्यका प्रमाण आता है। इसी प्रकार अन्यत्र भी यथासम्भव मिश्रपिण्ड और प्रक्षेपकोंका प्रमाण जानकर जैसा जहाँ सम्भव हो वहाँ वैसा जानना चाहिए। सत्तामें प्राप्त निषेकोंके द्रव्यको ज्ञात करनेका विधान निम्न प्रकार है विवक्षित कोई समयमें जो सत्ता रूप कर्मपरमाणुओंका द्रव्य हो वहाँ स्थिति सत्त्वका प्रथम समय वर्तमान है । उसी में उदय आने योग्य जो द्रव्य है वही प्रथम निषेकका द्रव्य है। उसका प्रमाण सम्पूर्ण समय प्रबद्ध मात्र साधारणतः है । [अंक संदष्टि द्वारा सरवका निरूपण-यहाँ केवल एक समय प्रबद्ध आस्रवको लेकर सबसे सरल रचना की गयी है। वास्तवमें योग कषाय एवं परिणाम गत फल दुर्गम है । ] वर्तमानसे सम्पूर्णस्थिति पर्यन्त रचना -८४७४६४५४४४३४२ ४१ ० ० ० ५ ४ अन्तिम गुणहानि । आस्रव . २२४ ३५२ 3/ x २०८ २५६ २८८ २८८ ३२० ९ १० ११० ० ०२४० ३२०३५२ ९ १० ११ १२००० २५६ ९ १० ११ १२ १३ ० ० ०२८८ ३२० ९ १० ११ १२ १३ १४ ०००३२० ३५२ | ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ ०० ०३५२ (३८४ । ९१०११/१२/१३ १४ १५ १६ ० ० ०३८४ ४१६ - ९१९३०४२/५५/६९/८४ १०० ४४४४४८६०५३०८५७८८ ६३०० प्रथम गुणहानि ४१६ विभिन्न समयोंमें शेष परमाणुओंका योग उदय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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