Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गणितात्मक प्रणाली
१४२७
भजिये पचर्य" सूत्रसे प्रथम निषेकमें दो गुणहानिका भाग देनेपर चयका प्रमाण आता है। जैसे ५१२ में १६ का भाग देनेपर ३२ होता है । यह द्वितीयादि निषेकोंमें एक-एक चय घटता प्रमाण प्राप्त कराता है । यथा, ४८० आदि ।
इस क्रममें जिस निषेकमें प्रथम निषेकसे आधा प्रमाण द्रव्य हो वहांसे दूसरी गुणहानि प्रारम्भ हो जाती है। जैसे यहाँ दूसरी गुणहानिका प्रथम निषेक ५१२२ २५६ होगा। यहां चयका प्रमाण भी प्रथम गुणहानिके चयसे आधा होगा, अर्थात् १६ होगा । इत्यादि ।
अन्तिम गुणहानिका अन्तिम निषेक
नाम
९
१०
११
१२
१३
१४
१५
१६
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एक वर्गम अविभाग
प्रतिच्छेद
१८
२०
२२
sa
२४
२६
२८
३०
३२
ሪ
३६
४०
૪૪
४८
५२
५६
६०
६४
= a
इसी प्रकार अनुभाग रचना होती है । जैसे यहाँ द्रव्यादिका प्रमाण जानते हैं, उसी प्रकार अनुभाग रचनामें भी जानते हैं । जैसे यहाँ निषेकोंमें परमाणु संख्याका प्रमाण निकालते हैं, वैसे ही अनुभाग रचनामें वर्गणाओंमें परमाणु संख्याका प्रमाण प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार देने योग्य द्रव्यमें भी ।
२५६
७२
८०
८८
९६
उदाहरण: एक योग्य स्थान में नानागुणहानि दो बार असंख्यात द्वारा भाजित पल्य मात्र एक गुणहानिमें स्पर्धकोंका प्रमाण दो बार असंख्यात द्वारा भाजित श्रेणिमात्र एक स्पर्धक वर्गणाओंका प्रमाण असंख्यत द्वारा भाजित श्रेणिमात्र एक वर्गणा में वर्गोंका प्रमाण असंख्यात जगत्प्रतर मात्र तथा एक वर्ग में अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यात लोकमात्र हैं। इनकी अर्थ संदृष्टि और अंक संदृष्टि निम्नप्रकार है
अर्थ संदृष्टि
अंक संदृष्टि
|
एक स्थान में स्पर्धकों और वर्गणाओंके प्रमाण निकालने सम्बन्धी राशिक
१०४
११२
१२०
१२८
'
=
एक वर्गणा में एक स्पर्धक में एक गुणहानिमें वर्ग वर्गणा स्पर्धक
४
*
१६०
१७६
१९२
a
२०८
२२४
२४०
२५६
a a
२८८
३२०
३५२
૨૮૪
९
४१६
४४८
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४८०
५१२
प्रथम गुणहानिका
प्रथम निषेक
एक स्थानमें गुणहानि ( नाना गुणहानि )
प
a a
५
स्थान
१
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