Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 804
________________ १४३२ - गो. कर्मकाण्डे द्वितीय समय सम्बन्धी परिणाम संख्या -प्रथम समय सम्बन्धी परिणाम संख्या + चय - श्रे' श्रे' a [आ ११ {(१)(२)- १} + १] ___ (आ १३) (आ ११) (१) (२) । श्रे ) 3a * (आ११) (आ ११) (१) _ श्रे' श्रे' [आ ११६(१) (२)-} + ३] (आ ११) (आ ११) (२) (२) इस प्रकार एक-एक चय मिलाते एक कम गच्छ मात्र चय प्रथम समय सम्बन्धी परिणाम संख्या में मिलानेपर अन्त समय सम्बन्धी परिणाम संख्या होती है। अन्त समय सम्बन्धी परिणाम संख्या =प्रथम समय सम्बन्धी परिणाम संख्या + (गच्छ-१) (चय) __ श्रे' a श्रे' a [आ ११ {(१) (२)-१} + १] - (आ ११) (आ ११) (१) (२) श्रे श्रेsa + (आ ११-१) आ ११) (आ ११) (१) _श्रे' , ' [आ११६(१) (२) + १}-1] (आ ११) (आ ११) (२) उपर्युक्तमें से दो द्वारा समच्छेद किया हुआ एक चय घटानेपर उपान्त समय सम्बन्धी परिणाम पुंज प्राप्त होता है। उपान्त समय सम्बन्धी परिणामपुंज - (अन्त समय सम्बन्धी परिणाम संख्या) - (चय) _श्रे' श्रे3 . [आ ११६(१) (२) + १}-१] श्रे. श्रे . (आ ११) (आ ११) (२) (२) (आ ११) (आ ११) (२) _ श्रे' a श्रे' [आ ११(१) (२) + १}- ३] (आ ११) (आ ११) (२) (२) इस प्रकार अपूर्वकरणमें संदृष्टि कही गयी है। इसमें अनुकृष्टि रचना नहीं होती है। अषःप्रवृत्तकरणमें विशेष विशुद्धता किये हुए परिणामोंके होनेपर भी गुणश्रेणी निर्जरा, गुण संक्रमण, स्थितिकाण्डोत्करण, अनुभागकाण्डोत्करण-ये चार आवश्यक नहीं होते हैं, परन्तु अपूर्वकरण परिणामोंके द्वारा ये होते है। कारण कि त्रिकालवर्ती नाना जीव सम्बन्धी अपूर्वकरण रूप विशुद्ध परिणाम सर्व भी अधःप्रवृत्त परिणामोंसे असंख्यात लोक गुणित होकर इस योग्यताको प्राप्त होते हैं । अपूर्वकरणके कालमें प्रथम समयसे लेकर अन्तिम समय पर्यन्त परिणाम स्थान असंख्यात लोक बार षट्स्थान पतित वृद्धिको लिये हुए जघन्य मध्यम उत्कृष्ट भेदसे युक्त होते हैं। उनके प्रतिसमय और प्रत्येक परिणामस्थानके प्रति विशुद्धिके अविभाग प्रतिच्छेदोंका प्रमाण अवधारण हेतु अल्पबहुत्व निम्न प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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