Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 722
________________ ५ ܘܕ १३५० गो० कर्मकाण्डे विसेस अहियकमम वितु जघन्यस्थितिजघन्यानुकृष्टिखंडं मोदल्गोंडु उत्कृष्टखंड पय्यंत मेकैकचवा. धिककर्मादिदं स्थापित्तं विरला द्वाविंशति रूपुगळं संपूर्णंगळवु । ४ । ५ । ६ । ७ ॥ मतं द्वितीय स्थिति विकल्पबंध प्रायोग्यंगळि | २२ । ४ । विल्लिएकरूपं तेगेवु बेरे स्थापिसि । २२ । १ । अवशिष्टमिदु । २२ । ४-१ मत्तमा उद्धृतरूपं । २२|१| मुनिनंर्त विभागिसि मोबल्गोंड स्थापिसिदोडितिवु । ५|६|७ | अवशिष्टचतुष्टयमनिवर । २२ । ४ । – १ । मेलिरिसि कर्डयोळु स्थापिसिदोत्कृष्ठतं डर्मितिक्कु २२/४ २२ । ४-१ मत्तं तृतीयस्थितिविकल्पबंधप्रायोग्यंगळिवरोळु । २२ । ४ । ४ । मुनिनंर्तकरूपतेर्गदु बेरिरिसि । २२ । ४ । १ । अवशिष्टमनिदं । २२ । ४ । ४ - १ | कर्डयोळु बरेदु मत्तमा तेर्गेदिरिसिद रूप । २२।४।१। मिदरोळ एकरूपतेगेदु बेरिरिसि । २२ । १ । अवशिष्टमनिदं । २२ । ४ । १ । उपो लिरिसिडुगुं । मत्तमा बेरिरिसिदुदनिदं । २२ । १ पूर्ववद् विभागिसि । ४ । ५ । ६ । ७ । उत्कृष्टखण्डपर्यंतमेकैकचयाधिकक्रमेण दत्ते ५ । ६ । ७ । द्वाविंशतिरूपाणि परिसमाप्नुवन्ति । द्वितीयविकल्पे तत्प्रायोग्याणीमानि २२ । ४ । अत्रैकभागं गृहीत्वा २२ । १ । विभज्य पंचादितो दत्वा ५ । ६ । ७ । अवशिष्टे चतुष्कं बहुभागस्य २२ । ४-१ । उपरि दत्ते उत्कृष्टखण्डं स्यात् । ૪ २२ । ४-१ तृतीयविकल्पे २२ । ४ । ४ । एकभागं गृहीत्वा २२ । ४ । १ । शेषं २२ । ४ । ४-१ | अन्ते दत्त्वापनीत१५ भागे २२ । ४ । १ मध्येकभागमुद्धृत्य २२ । १ । शेष २२ । ४-१ | मुपान्ते दत्त्वोद्धृतैकभागं २२ । १ । उसका प्रमाण चार मान लीजिए । नीचेकी स्थितिके बन्धके कारण अध्यवसाय स्थानों में और ऊपर की स्थिति के बन्धके कारण अध्यवसाय स्थानोंमें नाना जीवोंकी अपेक्षा समानता भी पायी जानेसे यहाँ अनुकृष्टिका विधान भी सम्भव है । क्योंकि ऊपर और नीचेमें समानताका नाम ही अनुकृष्टि है । सो अंकसंदृष्टि में अनुकृष्टिके गच्छका प्रमाण चार जानना । २० स्थितिकी रचना तो ऊपर-ऊपर होती है और एक-एक स्थितिरचनाके बराबर में अनुकृष्टि रचना होती है । जघन्यस्थितिकी अनुकृष्टिमें चयका प्रमाण एक है । चयधन छह है। प्रथम स्थितिके द्रव्य बाईस में छह घटानेपर सोलह रहे । उसमें अनुकृष्टि गच्छ चारका भाग देने पर चार पाये । यही जघन्यस्थिति में अनुक्रुष्टिका जवन्य खण्ड है । इससे उत्कृष्ट खण्डपर्यन्त एक-एक चय अधिक होता है । सो दूसरे, तीसरे, चौथे खण्डका प्रमाण पाँच, छह, सात २५ क्रमसे जानना । चारों खण्डोंका जोड़ बाईस होता है । स्थिति के दूसरे भेदका भी द्रव्य बाईस और चौगुने अध्यवसाय होनेसे अट्ठासी हुए। उनमें से एक भाग बाईसको लेकर पहले आदि अनुकृष्टि खण्डों में क्रमसे पाँच, छह, सात दो । शेष रहे चार तथा तीन बाईस = ६६ | उनको अन्तिम चतुर्थ उत्कृष्ट खण्डमें देनेसे सत्तर हुए। सब मिलकर अट्ठासी हुए । तीसरे स्थिति भेदमें अध्यवसाय बाईसका दो बार चौगुना है । अतः तीन सौ बावन हुए। उसमें से ३० एक भाग चौगुना बाईसको जुदा रखकर शेष चौगुना बाईसका तिगुना अर्थात् दो सौ चौंसठ अन्तके खण्ड में दो । और जुदे रखे चौगुना बाईस में से एक भाग बाईसको जुदा रखकर शेष तीन गुणा बाईस अर्थात् छियासठ तीसरे खण्डमें दो । जुदे रखे बाईस में से पहले और दूसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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