Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 742
________________ ५ १३७० गो० कर्मकाण्डे गु रूपोतानुकृष्टि पदार्द्धप्रमितविशेषगळं कळेदु = पपप गु अ aaa गुगु३ गु 2 २ अ aaa गु अनुकृष्टपददिदं भागिसिदोर्ड प्रथमपवहानिजघन्यस्थितिप्रतिबद्धस्थितिबंधाध्यवसायजघन्यानुकृष्टिप्रथमखंडप्रमाणमक्कुं = पपपप द्वितीयादिखंडंगळोळे कै कचयाधिक (ग) ळागुत्तं २ अगु प a चय प पोगि चरमखंडदो रूपोनानु कृष्टिपदमात्रचयंगळधिकंगळप्पुवु पपप गुप ई प्रथम २ अगुगु३प प्रथम गुणहानिजघन्य स्थितिप्रतिबद्ध स्थितिबन्धाध्यवसायेषु रूपोनानु कृष्टिपदार्धगुणितानुकृष्टिपदप्रमित विशेषानुद्धृत्य शेषे Jain Education International o -} O अ नुष्टिपदेन भक्ते प्रथमगुणहानिजघन्यस्थितिप्रतिबद्धानुकृष्टिप्रथमखण्डं स्यात् । १पपप गु = प प प गुO २० १aaa गुगु ३ २ अ aaaगु गु ३ २ अ १ छ Q प a २ १-० पप प गुप १-०२ अगुगु३ प २० द्वितीयादिखण्डमेकैकचयाधिकं भूत्वा चरमं रूपोनानुकृष्टिपदमात्रचयाधिकं भवति पपप चय प १-० CO a a a गु— प १-०२ गुगु३ प २ a खण्ड में एक हीन अनुकृष्टि गच्छ प्रमाण चय अधिक होनेपर अन्तका उत्कृष्ट खण्ड होता १० है । 'पदहतमुखमादिधनं' के अनुसार पद जो अनुकृष्टिका गच्छ है उससे मुख जो प्रथम खण्ड है उसे गुणा करनेपर आदिधन होता है । 'व्येकपदार्धन' इत्यादि सूत्र के अनुसार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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