Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 784
________________ १४१२ सूक्ष्म साम्पराय विवरण में जघन्य वर्गणा एक गुणहानिमें स्पर्धक प्रमाण नाना गुणहानि अनन्त अपकर्षण भागहार असंख्यात गुणा अपकर्षण भागहार एक स्पर्धक में वर्गणाओं का प्रमाण उत्कृष्ट पूर्व स्पर्धक के वर्गकी संदृष्टि जघन्य पूर्व स्पर्धकके वर्गकी संदृष्टि उत्कृष्ट अपूर्व स्पर्धक के वर्गकी संदृष्टि व ९ Jain Education International ना ख उ उ ।a ४ व ९ ना व व ख गो० कर्मकाण्डे जघन्य अपूर्व स्पर्धक के वर्गकी संदृष्टि उत्कृष्ट बादर कृष्टिके वर्गकी संदृष्टि जघन्य बादर कृष्टिके वर्गको संदृष्टि उत्कृष्ट सूक्ष्म कृष्टि के वर्गकी संदृष्टि जघन्य सूक्ष्मकृष्टि वर्गकी संदृष्टि व ख ९ उa व ख ९ ख उa व ख ९ ख ४ उ ख For Private & Personal Use Only व ख ९ ख ४ ख उa ख व ख ९ ख ४ ख ४ उa ख ख गुणश्रेणी निर्जरामे संदृष्टियाँ इसी प्रकार सरल हैं । ये अर्थ संदृष्टि अधिकारमें प्राप्य हैं । १ ३. अर्थ एवं संज्ञाका स्पष्टीकरण गोम्मटसारके दूसरे भाग कर्मकाण्ड में जैनकर्मसिद्धान्तका वर्णन है । उसके प्रारम्भमें कहा है कि शरोर सहित जीव प्रति समय सर्वांगसे कर्म और नोकर्मको ग्रहण करता है, जैसे आगसे तपा हुआ लोहपिण्ड जलको ग्रहण करता है । सभी शरीरोंकी उत्पत्तिके कारण कार्मणशरीरको कर्म या द्रव्यकर्म कहते हैं और शेष चार शरीरोंको नोकर्म कहते हैं । यहाँ 'नो' शब्दका प्रयोग ईषत् अथवा स्तोकके अर्थमें है । औदारिक, वैक्रियिक, आहारक और तैजसनाम कर्मके उदयसे चार शरीर होते हैं । ये आत्मगुणोंके घातक नहीं होते । इसलिए इन्हें नोकर्मशरीर कहते हैं । ये कर्मशरीर के सहायक होते हैं ( गो. जी. २४४ ) । कर्म शब्द के अनेक अर्थ हैं । वीर्यान्तराय और ज्ञानावरणके क्षयोपशमकी अपेक्षासे आत्माके द्वारा निश्चयनयकी अपेक्षा आत्मपरिणाम और पुद्गलके द्वारा पुद्गल परिणाम तथा व्यवहारनयसे आत्माके द्वारा पुद्गल परिणाम और पुद्गलके द्वारा आत्मपरिणाम जो किये जाते हैं वह यहाँ कर्म विवक्षित है। त्रे जीवको परतन्त्र करते हैं अथवा उनके द्वारा जीव परतन्त्र किया जाता है अतः उन्हें कर्म कहते हैं । अथवा मिथ्यादर्शन अविरति कषाय और योगरूप परिणामोंके द्वारा जीवके द्वारा किये जाते हैं अतः वे कर्म कहे जाते हैं । www.jainelibrary.org

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