Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 776
________________ गो. कर्मकाण्ड जगप्रतरको : इसे logrilog२ ( श्रे)२ लिख सकते हैं। अस्तु वर्गशलाका राशि यह + log२ log२ प १६२ २( जघन्य परीतासंख्यात व २ + log log२ (अ) लिखा जा सकता है ।) घनलोककी : इसे log, (श्रे)3 लिख सकते हैं। स्पष्ट है कि यह अद्धच्छेद राशि ३ log, श्रे होनेसे जगश्रेणोकी अर्द्धच्छेद राशिसे त्रिगुणित होता है। घनलोककी : इसे log. log२ (श्रे) लिख सकते हैं। इस वर्गशलाका राशि १६२ प्रकार इसका मान log२ ३ + व २ + logz loga २ (जघन्यपरीत असंख्यात) + logs log: (अ) है। स्पष्ट है कि प्राचीन प्रतीकों में कुछ त्रुटि रह गयी है। [नोट : पण्डित टोडरमलने log२ ३ की उपेक्षा की है, वह इस आधारसे कि अनुमानतः असंख्यातकी तुलनामें १ उपेक्षित हो सकता है। कारण यह भी है कि द्विरूप धनधारामें जितने स्थान जानेपर जगश्रेणी प्राप्त होती है, उतने-उतने ही स्थान द्विरूपधनधारामें होनेपर घनलोक होता है।] संख्यात : कहीं-कहीं संख्यातके लिए ४ अथवा ५ सहनानी अथवा रूप लिये गये हैं। असंख्यात : इसी प्रकार ९ के सम्बन्धमें भी है। आवली असंख्यात संकलन :क्षतिज रेखाका प्रयोग धनके लिए अथवा योगके लिए हुआ है। एक अधिक लक्ष ल अथवाल दो अधिक लोक २ घनलोक अधिक अनन्त : यह स्पष्ट है, क्योंकि = घनलोककी संदृष्टि है। : वास्तव में यहाँ ख के ऊपर एक उदग्र लकीर भी आव श्यक थी। इसे थेख भी लिखा जा सकता है। : यहाँ १६ ख पुद्गल द्रव्य है, काल द्रव्यका परि माण है, शेष धर्म, अधर्म एवं आकाश हेतु ३ का उपयोग किया गया प्रतीत होता है। अजीव द्रव्य परिमाण १६ख किंचित् अधिक अनन्त : यहाँ ख के ऊपर उदग्र लकीर अनन्तके कुछ कम राशि बतलानेके लिए है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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