Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ____ १३८७ सिद्धंतुदयतडुग्गयणिम्मलवरणेमिचंदकरकलिया।
गुणरयणभूसणंबुहिमइवेला भरउ भुवणयलं ॥९६७।। सिद्धांतोदयतटोद्गतनिर्मळवरनेमिचंद्रकरकलिता। गुणरत्नभूषणांबुषिमतिवेला पूरयतु भुवनतलं॥
अथवा भुवनयलं भुवने अलमतिशयेन । सिद्धांतमें बुदयाद्रियोळदयिसल्पट्ट निर्मलवर- ५ नेमिचंद्रकिरणंगळिवं पेच्चिद गणरत्नभूषणांबुधिय चामुंडरायने बंबुनिधिय मतियब वेले भवनतलमं तीवुर्ग । अथवा भुवनदोळ तिशयदिव पसरिसुगे।
गोम्मटसंगहसुत्तं गोम्मटसिहरुवरि गोम्मटजिणो य ।
गोम्मटरायविणिम्मिय दक्षिणकुक्कुडजिणो जयउ ।।९६८।। गुम्मटसंग्रहसूत्रमं चामुंडरायन देहारदोळेकहस्तमितेंद्रनीलरत्ननेमोश्वरन प्रतिर्मयुं गम्मट- १० राय चामुंडरायं विनिम्मिसिव दक्षिणकुक्कुटजिननें। सर्वोत्कृष्टदिवं वत्तिसुर्ग ॥
सिद्धान्तोदयाचले उदितनिर्मलबरनेमिचन्द्रकिरणर्वपिता गुणरत्नभूषणाम्बुधेश्चामुण्डरायसमुद्रस्य मतिवेलाभुवनतलं पूरयतु, अथवा भुवनेऽतिशयेन प्रसरतु ॥९६७॥
गोम्मटसंग्रहसूत्रं च चामुण्डरायविनिर्मितप्रासादस्थितैकहस्तप्रमेन्द्रनीलमयनेमीश्वरप्रतिबिम्बं च चामुण्डरायविनिर्मितदक्षिणकुक्कुटजिनश्च सर्वोत्कर्षेण दर्तेताम् ॥९६८॥
सिद्धान्तरूपी उदयाचलपर उदयको प्राप्त निर्मल और उत्कृष्ट आचार्य नेमिचन्द्ररूपी चन्द्रमाके वचनरूपी किरगोंसे वृद्धिको प्राप्त 'गुणारत्नभूषण' अर्थात् चामुण्डरायरूपी समुद्रकी मतिरूपी वेला भुवनतलको पूरित करे।
विशेषार्थ-जैसे उदयाचलपर उदित चन्द्रमाकी किरणोंके सम्पर्कसे समुद्रमें लहरें उठकर समुद्र के तटको लांघ जाती हैं और सर्वत्र फैल जाती हैं वैसे ही आचार्य नेमिचन्द्रका २० उदय षद्खण्डागम सिद्धान्तरूपी उदयाचलसे हुआ और ज्ञानरूपी किरणोंसे राजा चामुण्डरायरूपी समुद्र आप्लावित होकर सर्वत्र फैले ऐसा ग्रन्थकारका आशीर्वाद है। उन्होंने चामुण्डरायके लिए ही यह ग्रन्थ रचा था। उसीके नामपर ग्रन्थका नाम गोम्मटसार रखा गया है ॥९६७॥
गोम्मटसाररूपी संग्रह प्रन्थ जयवन्त हो। गोम्मट शिखरके ऊपर गोम्मटजिन २५ जयवन्त हो। अर्थात चन्द्रगिरि पर्वतपर चामुण्डरायके द्वारा बनवाये गये जिनालयमें विराजमान एक हाथ प्रमाण इन्द्रनीलमणि निर्मित नेमिनाथ भगवानका प्रतिबिम्ब जयवन्त हो। तथा गोम्मटराजा चामुण्डरायके द्वारा निर्मापित दक्षिण कुक्कुट जिन अर्थात् बाहुबलिका प्रतिबिम्ब जयवन्त हो।९६८॥
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