Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 718
________________ १३४६ गो० कर्मकाण्डे अनंतरमा भागहारभूतगुणहानिप्रमाणमं पेळदपरु : ठिदिगुणहाणिपमाणं अज्झवसाणम्मि होदि गुणहाणी । ाणागुणहाणिसला असंखभागो ठिदिस्स हवे ||९५१ ॥ स्थितिगुणहानिप्रमाणं अध्यवसाये भवेद्गुणहानिः । नानागुणहानिशलाका असंख्य भागः ५ स्थितेर्भवेत् ॥ ई कषायबंधाध्यवसायदो गुणहानिप्रमाणमं निते दोर्ड आलापापेक्षेपिदं स्थितिरचनेयोल पेळपट्ट दशकोटी कोट्यादिस्थितिग पेद प्रमाणमे स्थितिबंधाध्यवसाय गुणहानिप्रमाणमक्कुं । १५ ० परमार्त्यदिदमिनितक्कु पु११ मिदं द्विगुणिसिदोडे दोगुणहानियक्कुं - १११।२ नानागुण छे व छे छे व । छे a a la हा निशलाकाप्रमाणमंत स्थितिर्ग पेद नानागुणहा निशलाकाऽसंख्यातैकभागमक्कु । नाना | छे व छे १० मी नानागुणहानिशलाकेगळिदं स्थितियं भागिसिदोर्ड गुणहान्यायाममक्कुमप्पुदरिदमध्यवसायविजयदो गुणहानिप्रमाणं सामान्यालापापेक्षयिदं स्थितिगुणहानिप्रमागमे दु पेल्पटुर्द दवधारिसल्पडुगुमेकं दोडे नानागुणहानिशलाकेगल स्थितिय नानागुणहानिशलाकेगळं नोडलुम संख्यात १६ ८।२ ९ ረ १ Jain Education International ३२ ८।२ १८ ८ २ ६४ ८ ।८ ३६ प ८ ४ १२ १२८ ८।२ ७२ छे-व-छे a ८ ८ गुणहानिप्रमाणं तु प्रबन्धावसरे कर्मस्थित्युक्त गुणहानिप्रमाणवदत्र कपायध्यवसायेऽपि भवति - तदेव द्विगुणं दोगुणहानिः नानागुणहानिशलाकाप्रमाणं स्थितिनानागुणहानि प 2 ว छे-त्र-छे २५६ ५१२ ८।२ ८।२ १४४ २८८ ८ १६ पूर्व में बन्धके कथन में कर्मस्थितिकी रचनायें जैसे गुणहानिका प्रमाण कहा है वैसे ही यहाँ कषायाध्यवसायस्थानके कथनमें भी गुणहानिका प्रमाण जानना । अर्थात् पूर्व में कहा था कि स्थिति प्रमाण में नानागुणहानि शलाकाके प्रमाणका भाग देनेपर जो प्रमाण आवे वही गुणहानिका प्रमाण है वैसे ही यहाँ जानना । सो यहाँ जघन्यस्थितिसे उत्कृष्ट स्थितिपर्यन्त जितने स्थितिके भेदोंका प्रमाण है वही स्थितिका प्रमाण है । उसमें नानागुणहानि • शलाका के प्रमाणका भाग देनेपर जो प्रमाण आवे वही एक गुणहानि आयामका प्रमाण जानना । उससे दूना दो गुणहानिका प्रमाण जानना । तथा नानागुणहानिका प्रमाण, स्थिति रचना में जो नानागुणहानिका प्रमाण कहा था उसके असंख्यातर्वे भाग जानना । सो विव ८ ३२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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