Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 711
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदोपिका १३३९ इल्लि अंतःकोटीकोटिगळु प्रतिभागदिदं ज्ञानावरणादिगळगे साथिस पडुवुवल्लि त्रैराशिक - मिटु । प्रसा २० । को २ । फ अंतः को २ । सा इसा ३० । को २ ॥ लब्धज्ञानावरणाविगळंतः कोटी कोटिप्रमाणमिनितक्कुं । सा अंतः को २ । ३ । इंतु प्रतिभागदवमंतः कोटीको टिगळ साधिसिकोळल्पडुवुवु ॥ अनंतरं श्रेण्यारूढनोळ सांतरस्थिति विकल्पंगळप्पुवेंदु पेदपरु । :संखेज्जसहस्सा णिवि सेढीरूढम्हि सांतरा होंति । सगसग अवरोति हवे उक्कस्सादो दु सेसाणं ॥ ९४६ ॥ संख्यातसहस्राण्यपि श्रेण्यारूढे सांतराणि भवंति । स्वस्वजघन्य पय्र्यंतं भवेदुत्कृष्टात्त शेषाणां ॥ सम्यक्त्वाभिमुखनप्प मिध्यादृष्टियं संयमासंयम संयमाभिमुखनप्पऽसंयतनं संयमाभिमुख - १० नप्प देशसंयतनुं श्रेण्याभिमुखनप्प अप्रमत्तनुम पूर्वकरणनुमनिवृत्तिकरणनुं सूक्ष्मसांपरायतुमें बिवर्गळु श्रेण्यारूढरें पेळपट्टखगंळोळ संभविसुव सांतरस्थितिविकल्पस्थानंगळ संख्यातसहस्रं - गळपुवु । १००० । येर्त बोडधः प्रवृत्तकरणपरिणामबोळु तत्प्रथमसमयं मोवगोंड अत्र प्र-सा २० को २ फसा अन्तः को २ । इ-सा ३० को २ लब्धमन्तः को २ । ३ । इति २ ज्ञानावरणादीनामन्तःकोटीकोटिं साधयेत् ॥ ९४५ ॥ अथ सान्तरस्थितिविकल्पानाह सम्यक्त्व देश सकलसंयमश्रेण्यभिमुखाः क्रमशो मिध्यादृष्टयसंयत देशसंयताप्रमत्ताः, अपूर्वकरणादित्रयश्च श्रेण्यारूढाः तेषु सान्तरस्थितिविकल्पस्थानानि संख्यातसहस्राणि स्युः १००० तद्यथा ५ जिन कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति बीस कोड़ाकोड़ी सागर है उनकी भी जघन्य स्थिति अन्तःकोटाकोटी सागर है और जिन कमकी स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागर है उनकी भी स्थिति अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर है । किन्तु दोनोंमें अन्तर है और उसे त्रैराशिक द्वारा जानना २० चाहिए। यदि बीस कोड़ाकोड़ी सागरकी उत्कृष्ट स्थितिवाले कर्मोंकी जघन्य स्थिति अन्त:कोटाकोटी सागर है तो तीस कोड़ाकोड़ी सागरकी उत्कृष्ट स्थितिवाले कर्मोंकी जघन्य स्थिति कितनी होगी। ऐसा करनेपर ड्योढ़ी अन्तःकोटाकोटी सागर स्थिति होती है ||९४५|| आगे सान्तर स्थिति के भेद कहते हैं— १५ सम्यक्त्व, देशसंयम, सकलसंयम, उपशमश्रेणी अथवा क्षपकश्रेणीके अभिमुख हुए २५ क्रमसे मिध्यादृष्टि, असंयत, देशसंयत, अप्रमत्त, अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानवर्ती जीव तथा उपशम अथवा क्षपकश्रेणीपर चढे जीवोंके सान्तर स्थितिके भेद संख्यात हजार हैं। वही कहते हैं Jain Education International १. अधःप्रवृत्तकरणपरिणामे तत्प्रथमसमयाच्चरमसमयपर्यंतं प्रतिसमयमनन्तगुणविशुद्धिवृद्धि सातादिप्रशस्तप्रकृतीनां प्रतिसमय मनन्तगुणवृद्धया चतुःस्थानानुभागबन्धं असाताद्यमशस्त प्रकृतीनां प्रतिसमयमनन्त- ३० गुणहान्या द्विस्थानानुभागबन्धं बन्धापसरणं च करोति । किंनाम बन्धापसरणं ? ज्ञानावरणादीनां स्वयोग्यान्तःकोटीकोटिस्थिति तद्योग्यान्तर्मुहूर्तपर्यतं बध्नन् ततस्तदनन्तरसमये पल्यसंख्या तैकभागोनामन्तर्मुहूर्त - पर्यंत बनातीति । अभी स्थितिविकल्पा अघः प्रवृत्तकरणकाले संख्याताः त्रैराशिकेनानेन - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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