Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे छे व छे ३३। ई प्रकारविंद मतिवंतं तनिष्टस्थितिगे नानागुणहानिशलाकेगळं तंदु को बुदु ।। ७० को २
यितु गुणहान्यध्वानमुं नानागुणहानिशलाके गर्छ निषेकभागहार मुमन्योन्याभ्यस्तराशियु मरियल्पडुत्तिरलु । गु ८ । नाना ६ । दो गुण १६ । अन्योन्याभ्यस्त ६४ ॥
उक्कस्सहिदिबंधे सयलाबाहा हु सव्वठिदिरयणा ।
तक्काले दीसदि तो दो दो बंधहिदीणं च ॥९४०॥ उत्कृष्ट स्थितिबंधे सकलाबाधा खलु सर्वास्थितिरचना। तत्काले दृश्यते ततो दो दो बंधस्थितीनां च ॥
उत्कृष्टस्थिति विवक्षितप्रकृतिर्ग बंधमागुत्तं विरला स्थितिगे उत्कृष्टाबाधेयक्कुं स्फुटमागि १० सर्वस्थितिरचनेयुमक्कुमा कालदोळे बंधमाद समयदोळे उत्कृष्टस्थित्युत्कृष्ट वरमनिषेकस्थितियत्तणि केळगे केळगे समयोत्तरहीनतयु काणल्पड़गुं:
स्थितिसा ३०
को २
५१२
आबा ३०००
संख्यातकभागः छे-व-छे ३३ इत्थमेवेष्टस्थानं ज्ञात्वा मतिमान स्वेष्टस्थिते नागुणहानिशलाका आनयेत् । एवं
७० को २ गुणहान्यध्वाननानागुणहानिशलाकानिषेकभागहारान्योन्याभ्यस्त राशिषु ज्ञातेषु गु ८ । नाना ६ । दोगु १६ । अन्योन्या ६४ ॥९३९॥
विवक्षितप्रकृतेरुत्कृष्टस्थितिबन्धे ज्ञाते तद्वंघसमये एव उत्कृष्टाबाधा सर्वस्थितिरचना च दृश्यते । तस्थितिचरमनिषेकादधोऽधः स्थितिबन्धस्थितीनां समयोत्तरहीनता दृष्टव्या
जो लब्धराशि आवे उतनी नाना गुणहानि शलाका जानना। इस प्रकार विवक्षित स्थानको जानकर बुद्धिमान् जीव विवक्षित स्थितिकी नाना गुणहानि शलाकाका प्रमाण लाता है।
इस तरह गणहानि आयाम, नाना गुणहानि शलाका, निषेक भागहार और अन्योन्याभ्यस्त २० राशि जान लेनेपर क्या होता है सो कहते हैं ।।९३९।।
विवक्षित प्रकृतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होते ही उसके बन्धके समयमें ही उत्कृष्ट आबाधा और सर्वस्थितिकी रचना देखी जाती है। उस स्थितिके अन्तिम निषेकसे नीचेनीचे प्रथम निषेक पर्यन्त स्थितिबन्धरूप स्थिति एक-एक समय हीन होती है। अर्थात् अन्तिम निषेककी स्थिति तो विवक्षित समयप्रबद्धकी स्थिति प्रमाण ही होती है। उसके नीचे
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१. धो धो मु.।
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