Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
अनंतरमधिकरूपवदमे तु काणल्पडुगुर्म दोर्ड पेदपरु । :आधा बिदियो तदियो कमसो हि चरिमसमयो दु । पढमो विदियो तदियो कमसो चरिमो णिसेओ दु ॥ ९४९ ॥ आबाधानां द्वितीयस्तृतीयः क्रमशो हि चरमसमयस्तु प्रथमो द्वितीयस्तृतीयः क्रमशश्चरमो
निषेकस्तु ॥
सर्व्वप्रकृतिगळ बंधमाद समयदोळे सर्व्वाबाधेयुं सवंस्थितिनिषेक रचने युमा गिद्दं स्थितिय अनंतरसमयंगळोळा बाधासनमंगळ द्वितीयसमयमुं तृतीयसमयमुमिंतु क्रम दिंदे चरमसमयमक्कुं । तुमते तदनंतर निषेकप्रयमसमयमुं द्वितीयनिषेक द्वितीयसमयमुं तृतीयनिषेक स्थिति तृतीयस मय मुं क्रर्मादिदमितु नडदु चरम निषेकस्थिति चरम निषेकमक्कु । मिदेने बुदाथर्म ' दोडे कम्मंप्रकृतिबंध समयदोळे आबाघातनिषेक स्थितिरचनेयक्कुं । द्वितीयादिसमयं मोदगोंड आबाधाचरमसमयपप्यतं १० तत्कालबंधमाद समयप्रबद्धद्रव्य के समयाधिका बाधाकालविदं होनस्थितियुतपरमाणुगळु कम्मंप्रकृतिगळगलं बुदमाबाधाकालं पोगुत्तिरलु अनंतरसमयदोळुदयप्रकृतिगळ प्रथम निषेक मुदयिसि
५१२
Jain Education International
आवा हा ३०००
१३२३
स्थिति सा ३० को २
॥ ९४० ॥ आधिक्यं च कथं दृश्यते इत आह
सर्वप्रकृतीनां बन्धसमये सर्वाबाधासर्वस्थितिनिषेकरचनारूपस्थितायाः स्थितेरनंतरसमयेषु आबाधासमयानां द्वितीयः तृतीयः एवं गत्वा चरमः समयः स्यात् । तु-पुनः तदग्रे प्रथमः द्वितीयः तृतीयः एवं गत्वा १५ द्विचरम निषेककी उससे एक समय हीन स्थिति है। इसी प्रकार प्रथम निषेक पर्यन्त एकएक समय हीन स्थिति जानना ||९४०||
इस प्रकार स्थितिकी अधिकता कैसे है ? यह कहते हैं
सब प्रकृतियोंके बन्धसमय में सर्व आबाधा और सब स्थितिकी निषेकरूप रचना होनेके अनन्तर समयों में आबाधा कालका दूसरा समय, तीसरा समय इस प्रकार एक-एक समय २० बढ़ते-बढ़ते आबाधा कालके अन्त में अन्तिम समय होता है । उसके आगे प्रथम निषेक, दूसरा निषेक, तीसरा निषेक इस प्रकार जाकर स्थिति के अन्तिम समय में अन्तिम निषेक होता है । सो आबाधाकाल बीतनेपर जिस-जिस समय में जितने परमाणुओंका समूहरूप निषेक होता है उस उस समय में उतने परमाणु उदयरूप होते हैं । उस उदयरूप समयके
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org