Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १३१९ संवर्ग माडिदोर्ड लब्धराशि पल्यद्वितीयमूलमात्रप्रथम मूलंगळप्पुवु । भू १ । मू २ । बेरे तेगेदिरिसिद धनरूपं विरळिति छे ६ । १ द्विकमनित्तु वग्गित संवग्गं माडिदोर्ड लब्धराशि यथायोग्यासंख्यातमक्कु मदु द्वितीयमूलक्के गुणकारमक्कु । मू१ । मू२ । । मिदु षष्टिसागरोपमकोटी कोटिस्थितिगन्योन्याभ्यस्तराशिप्रमाणमक्कुं । मत्तं सप्ततिकोटीको टि सागरोपमस्थितिनानागुणहानि पंक्तियोळ अंत छे ७ गुणगुणियं छे ७ । ८ अपवतित
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मिदु । छे७ । आदि । व छे । ७ । विहोण में दिवसंख्यातगुणहीनरा शिवप्पुवरदं गुणकारकके गुणकारमेळुरूपं तोरि किचिन्न्यूनमं माडिदोडिदु । छे ७ । रूऊणुत्तरभजियं छे ७ अपततमिदु ।
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छे। इदर्क द्विकसंवर्गमं माडुत्तं विरलु लब्धं पल्यमक्कु । मा विरलनराशिय रुणं पल्यवर्गशलाकार्द्धच्छे दंगळिनित पुर्दारदं व छे ७ अपर्वात्ततमिववके । व छे । द्विकसंवग्गं माजिद लब्धराशि
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पल्यवर्गशलाकामात्रमक्कुमद
पर्क
स्वप्नपत्य द्वितीय मूलमात्र प्रथममूलं मू १भू २ पृथग्वृर्तकरूपमात्र छे–६ । १ द्विकाहत्युत्पन्नासंख्यातेन 3 | गुणितं मू १। मू २ । तदन्योन्याभ्यस्त राशिः स्यात् ।
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सप्ततिकोटी कोटिसागरोपमलब्धपंक्तौ प्राग्वत्संकलितायां छे-व-छे नानागुणहानिशलाकाराशिः स्यात् । अत्रत्यछेदमात्र द्वि कसंवर्गोत्पन्नपत्यं तदृणमात्रद्वि कसंवर्गोत्पन्नतद्वर्गे शलाकाराशिना होनरूपजत्वाद्भक्तं प
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हारमक्कु प मिप्पत्तु कोटीको टिसागरोपमस्थितिगन्यो- १०
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अर्द्धच्छेदों का चौथा भाग हुआ। इतने दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करनेपर किंचित् १५ कम पल्के द्वितीय मूलसे गुणित पल्य के प्रथम मूल प्रमाण होता है। जो एक गुणकार जुदा रखा था वह किंचित् कम छह गुणा पल्यके अर्द्ध च्छेदोंके छप्पनवाँ भागका गुणकार था । अतः उतने दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करनेपर असंख्यात हुआ । उससे गुणा करनेपर असंख्यातगुणा किंचित् न्यून पल्यके द्वितीय मलसे गुणित प्रथममूल प्रमाण अन्योन्याभ्यस्त राशि होती है ।
सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरकी स्थिति सम्बन्धी पंक्ति में पूर्ववत् जोड़नेपर पल्यकी वर्गशलाकाके अर्द्धच्छेदोंसे हीन पल्यके अर्द्ध च्छेद प्रमाण नाना गुणहानि जानना । पल्य के अर्द्धच्छेद प्रमाण दोके अंक रखकर परस्पर में गुणा करनेपर पल्य होता है । 'विरलिद रासीदो पुण' इत्यादि सूत्र के अनुसार जितने हीनरूप थे उन प्रमाण परस्पर में गुणा करनेसे जो राशि होती है वह उत्पन्न राशिका भागहार होती है । अतः पल्यकी वर्गेशलाकाके अर्द्धच्छेद प्रमाण २५ १. पुन: षष्टिकोटाकोटिसागरोपमाणां तत्पंक्ती अन्तणं छे-६ गुणगुणियं छे - ६ । ८ आदि व छे - ६ विहीणं
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छे-६ रूऊणुत्तरभजियमिति छे-६ नानागुणहानिप्रमाणं । इत्यधिकः पाठः ।
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