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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १२९९ यितायुर्व्वजित सप्तकम् मंगळगमिर्त स्थितिनिषेकरचनाविरचनं प्रतिसमयमुमप्पुर्व वरियल्पडुगुमिल्लि मूलप्रकृतिगळ्गमुत्तरप्रकृतिगळगं स्थितिनिषेकरचनाकरणवो एक गुणहान्यायामादि सामग्रीविशेषमं पेळदपरु । : सव्वासि पयडीणं णिसेयहारो य एयगुणहाणी । सरिसा हवंति णाणागुणहाणिसलाओ वोच्छामि ॥ ९३२ ॥ सर्व्वासां प्रकृतीनां निषेकहारश्चेकगुणहानिः । सदृशाः स्युर्नानागुणहानिशलाका वक्ष्यामि ॥ एवमायुविना सप्तकर्मणां स्थितिनिषेकरचना प्रतिसमयं स्यात् । किन्तु — १६ O ०००० Jain Education International 2 २८८ ० ० O ० ५१२ उक्त संदृष्टि में प्रथम गुणहानिका आदि निषेक पाँच सौ बारह । मध्य निषेकोंके ग्रहण के लिए बिन्दी लिखीं । अन्तिम निषेक दो सौ अट्ठासी । मध्यकी गुणहानियोंवे निषेकोंको ग्रहण करनेके लिए बीच में बिन्दी लिखी हैं । अन्तिम गुणहानिका प्रथमं निषेक सोलह । १० बीके निषेकोंके लिए बिन्दी है । अन्तिम निषेक नौ। यह केवल अंकसंदृष्टि है । इस प्रकार मिथ्यात्वका कथन उत्कृष्ट स्थिति व उत्कृष्ट समयप्रबद्धकी अपेक्षा जानना । अन्यत्र जैसी जहाँ स्थिति और समयप्रबद्ध हो वैसा स्थिति और द्रव्यका प्रमाण जानना । दो गुणहानि और गुणहानि आयामका प्रमाण सर्वत्र समान है । नानागुणहानि अन्योन्याभ्यस्त राशि स्थिति के अनुसार जानना ||९३१॥ वही कहते हैं For Private & Personal Use Only १५ www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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