Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
एक्कादी दुगुणकमा एक्केक्कं रुधियूण हेट्ठम्मि ।
पदसंजोगे भंगा गच्छं पडि होति उवरुवरि ॥८६०॥
एकादयो द्विगुणक्रमादेकैकमवलंब्याऽधः पदसंयोगे भंगाः गच्छं प्रति भवत्युपर्युपरि॥ ___ एकमादियागि द्विगुणद्विगुण क्रमदिदमेकैकपदंगळमवलंबिसियधस्तनपदसंयोगदोळ गच्छं प्रति मेले ५ मेले भंगंगळप्पुवु । अदेंतेंदोडे कुमतिज्ञानमोदु यिल्लि प्रत्येकभंगमों देयकुं १॥
___ कुश्रुतदोळु प्रत्येकभंगमोढुं १। तदधस्तन कुमतिज्ञानदोडने संयोगमागुत्तं विरलु द्विसंयोगभंग १ कूगि भंगमेरडु २। विभंगज्ञानदोळ प्रत्येक भंगमोदु १। तदधस्तन कुश्रुतादिगळो. डने द्विसंयोगभंगमेरडु।२। त्रिसंयोगभंगमा दु।१। कूडि भंगंगळ नाल्कु ४। चक्षुर्दशंनदोळु
प्रत्येकभंगमोंदु।१ । तदधस्तनविभंगज्ञानादिगळोडने द्विसंयोगभंगंगळु मूरु ३। त्रिसंयोगभंगंगळु १. मूरु ३। चतुःसंयोगमोंदु १ कूडि भंगमेंटु ८। अचाईर्शनदोळ प्रत्येकभंगमोदु १ ।
तदधस्तनचक्षुद्देशनादिगलोडने द्विसंयोगभंगंगळु नाल्कु ४ । त्रिसंयोगभंगंगळार ६ । चतुःसंयोगभंगंगळु नाल्कु । ४। पंचसंयोग भंगमोंदु १ । कूडि भंगंगळ पविनारु १६ । दानलब्धियोळु
एकमादि कृत्वा द्विगुणद्विगुणक्रमाः एकैकपदमवलंब्याघस्तनपदसंयोगे गच्छं प्रत्युपर्युपरि भंगा भवन्ति । तद्यथा
कुमती प्रत्येकभंग एकः । कुश्रुते प्रत्येकभंग एकः । तदधस्वनेन संयोगे द्विसंयोगेऽप्येक: मिलित्वा द्वो। विभंगे प्रत्येकभंग एकः । तदधस्तनकुथुतादिना द्विसंयोगो द्वौ। त्रिसंयोग एकः, मिलित्वा चत्वारः । चक्षुर्दर्शने प्रत्येकभंग एकः । तदघस्तनविभंगादिना द्विसंयोगास्त्रयः । त्रिसंयोगास्त्रयः । चतुःसंयोग एकः । मिलित्वाष्टो। अचक्षुर्दर्शने प्रत्येकभंग एकः । तदधस्तनचक्षुरादिना द्विसंयोगाश्चत्वारः । त्रिसंयोगाः षट् । चतुःसंयोगाश्चत्वारः.
एकसे लगाकर क्रमसे दूने-दूने एक-एक पदका अवलम्ब लेकर नीचे-नीचेके पदोंके २० संयोगसे जितनेवाँ पद हो उसके ऊपर-ऊपर भंग होते हैं । वही कहते हैं
मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें प्रत्येक पद सबमें नीचे कुमतिज्ञानका स्थापन किया। उसका प्रत्येक भंग एक ही है । उसके ऊपर कुश्रुत स्थापित किया। उसका प्रत्येक भंग एक और उसके नीचे स्थापित कुमतिके संयोगसे दो संयोगी भंग एक । इस प्रकार दो भंग हुए। उसके ऊपर
विभंगको स्थापित किया। उसका प्रत्येक भंग एक और उसके नीचे स्थापित कुश्रत और २५ कुमतिके संयोगसे दो संयोगी भंग दो। तथा तीनोंके संयोगसे तीन संयोगी भंग एक । इस
प्रकार चार भंग हुए। उसके ऊपर चक्षुदर्शन । उसका प्रत्येक भंग एक और उसके नीचे स्थापित विभंग कुश्रुत कुमति के संयोगसे दो संयोगी भंग तीन । और चक्षु कुमति कुश्रुत अथवा चक्षु कुमति विभंग या चक्षु कुश्रुत विभंगके संयोगसे तीन संयोगी भंग तीन । चारोंके
संयोगसे चार संयोगी भंग एक । ऐसे आठ हुए। उसके ऊपर अचक्षुदर्शन । उसमें प्रत्येक ३० भंग एक । उसके नीचे चक्षुदर्शन, विभंग, कुवत, कुमतिका संयोग क्रमसे होनेपर दो संयोगी
भंग चार । तथा अचक्षु चक्षु कुमति, या अचक्षु चक्षु कुश्रुत, या अचक्षु चक्षु विभंग या अचक्षु कुमति कुधुत, या अचक्ष कुमति विभंग या अचक्षु कुश्रत विभंगके संयोगसे तीन संयोगी भंग छह । तथा अचक्षु चक्षु कुमति कुश्रुत या अचक्षु चक्षु कुमति विभंग या अचक्षु चक्षु
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