Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका
१२८१ द्रव्यमें वुदु समयबद्धमकुमj द्रव्यविभंजनदोक्तप्रमाणमनुकदमा द्रव्यकके जीव. नोडने सहावस्यानकालं स्थित्यद्धे ये द पेळल्पटुवq संख्यातपल्यमितमक्कुं।
मिच्छे वग्गसलायप्पहुडिं पल्लस्स पढममूलोत्ति ।
वग्गहदी चरिमो त्तच्छिदिसंकलिदं चउत्थो य ॥९२५।। मिथ्यात्वकनंगि वग्गंशलाका प्रभृति पल्यस्य प्रयममूलपयंतां। वर्गहतिश्चरमस्तच्छेदः ५ संकलितं चतुर्थां च ॥
इल्लि द्रास्थितिगुणहानि दोगुणहानि येब नाल्कर संदृष्टिगळ सप्तकम्मंगळगे साधारणमक्कुं । नानागुणहानिशलाकेगळुमन्योन्याभ्यस्तराशियुं साधारणंगळल्तद् कारणमागि तद्विशेषकथनदो मिथ्यात्वकर्मणि एंदितु पेळल्पटुद । मिथ्यात्वकर्मदोछ अन्योन्याभ्यस्तराशियु नानागुणहानिशलाकेगमे नितनितप्पुर्व दोडे चरमराशियप्प अन्योन्याभ्यस्तराशिप्रमाण पेळल्पडुगुमदेते दो:-द्विरूपवर्गधारेयं पल्यपथ्यंत स्थापिसि अवर केळगे तत्तद्राशिगळ अद्धच्छेदंगळं स्थापिसि अवर केळ तत्तद्वर्गशलाकेगळं स्थापिसि संदृष्टि :| २४ १६ २५६६२ = ४२ = १८ = ००० व व व छे छे छे ००० र ३ मू २ मू १५ |
| ०२२ ३ | ४ / ५/६/००० व
छेछ ००० व ३ व २ व १ व
अर्थसंदृष्टी तु द्रव्यं प्रागुक्तप्रमाणः समयप्रबद्धः स्यात् । स्थित्यद्धा संख्यातपल्यानि सा च जीवेन सह समयप्रबद्धस्यावस्थानकाल: ॥९२४॥
द्रव्यस्थितिगुणहानिदोगुणहानिसंदृष्टयः सप्तकर्मणां साधारणाः नानागुणहान्यन्योन्याम्पस्तराशी १५ चासाधारणौ तेन तयोविशेषं वक्तुमिच्छे इत्युक्तवान् । तत्र द्विरूपवर्गधारायाः पल्यवर्गशलाकादिपल्यपयंतराशीन्
और अर्थसंदृष्टि अर्थात् यथार्थ कथनके रूपमें द्रव्य तो पूर्वोक्त प्रमाण समयप्रबद्ध है। अर्थात् एक समयमें जितने परमाणु बँधते हैं उनका कथन पहले प्रदेशबन्धाधिकारमें कर आये हैं। उनका प्रमाण द्रव्य है । बँधा हुआ समयप्रबद्ध जितने समय तक जीवके साथ अवस्थित रहता है वह स्थितिआयाम है । सो स्थितिआयाम संख्यातपल्य प्रमाण है। उसके २० समयोंका प्रमाण स्थितिराशि है ॥९२४॥
द्रव्य, स्थिति, गुणहानि आयाम, दो गुणहानि, इनकी संदृष्टि तो सातों कर्मों के समान है। यहाँ यद्यपि द्रव्य और स्थिति हीनाधिक है तथापि सामान्यसे द्रव्य समयप्रबद्ध प्रमाण और स्थिति संख्यात पल्य प्रमाण है। किन्तु नानागुणहानि और अन्योन्याभ्यस्त राशि समान नहीं है । इससे इनके सम्बन्धमें विशेष कथन करना चाहते हैं-प्रथम ही मिध्यात्व २५ नामक कर्मको लेकर कहते हैं जिसकी स्थिति सत्तर कोडाकोड़ी सागर है।
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