Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
१२८७
कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका पचयस्स य संकलणं सगसगगुणहाणिदव्वमझम्मि ।
अवणिय गुणहाणिहिदे आदिपमाणं तु सव्वत्थ ।।९३१॥ प्रचयस्य च संकलितं स्वस्वगुणहानिद्रव्यमध्येऽपनीय गुणहानिहते आविप्रमाणं तु सर्वत्र ॥
चयव संकलित धनमं तंतम्म गणहानियोल तंदु स्वस्वगणहानिद्रव्यदोळ कळेदु शेषषनर्म गुणहानियिदं भागिसुत्तं विरलु ततम्म गुणहानिप्रयमनिषक प्रमाणमधिकसंकलनरूपदिनक्कुमदेते. ५ बोडे प्रथमगुणहानिद्रव्यचयधनमिदु ८३२। ८ लब्धचयघनमिदु । ८९६ । इदं प्रथमगुणहानिद्रव्यदोळु ३२०० । कळेदुळिद शेषमं २३०४ । गुणहानियिंदं भागिसिबोडे अधिकसंकलनकमविदमादिनिषेकप्रमाणमिनितक्कु २८८ । मिदरमेले स्वविशेषंगळ स्पोनगच्छमात्रंगलु पेर्चतं पोगितच्चरमदोल रूपोनगच्छमात्रचयंगळ ३२।४ पेच्चिदुविनिताकु ५१२ । मी प्रथमगुणहानिगे संदृष्टि २८८ । ३२० । ३५२ । ३८४ । ४१६ । ४४८ ॥ ४८०। ५१२ ॥ द्वितीयगुणहानिचयधनमितु १०
॥ १६ ८ गुणिसिद लब्धमिवं ४४८ । द्वितीयगुणहानिद्रव्यमिवरोळु १६०० । कळेद शेषमिदं । ११५२ । गुणहानियिद भागिसिदोड ११५२ षिकसंकलनापविदमादिनिषेकप्रमाण १४४ । मिवर
तत्तच्चयस्य संकलितधनमानीय स्वस्वगुणहानिद्रव्यमध्येऽपनीय शेषे गुणहान्या भक्ते स्वस्वगुणहानि
प्रथमनिषेकप्रमाणमधिकसंकलनरूपेण स्यात् । तत्र प्रथमगुणहानी चयधनमिदं ८ । ३२ । ८ । लब्धं ८९६ ।
तत्सर्वद्रव्ये ३२०० । अपनीय शेष २३०४ गुणहान्या भक्तमादिनिषेकप्रमाणं स्यात् २८८ बस्योपर्ये केकस्व. १५ विशेषवृद्धी संदृष्टिः-२८८ । ३२० । ३५२ । ३८४ । ४१६ । ४४८॥ ४८०। ५१२ । तथा द्वितीयगुणहानि
विवक्षित गुणहानिके सर्वचय धनका प्रमाण निकालकर उसे अपनी-अपनी गुणहानिके सर्वद्रव्यमें-से घटानेपर जो प्रमाण शेष रहे, उसमें गुणहानि आयामका भाग देनेपर अपनी-अपनी गुणहानिके प्रथम निषेकका प्रमाण होता है। उसमें एक-एक चय बढ़ानेपर द्वितीयादि निषेकोंका प्रमाण होता है। जैसे अंकसंदृष्टि रूपसे-प्रथम गुणहानिका चयधन- २० एकहीन गच्छ आठका आधा साढे तीनको चय बत्तीससे गणा करनेपर एक सौ-बारह हए । उन्हें गच्छ आठसे गुणा करनेपर आठ सौ छियानबे हुए। यही चयधन है । इसको सर्वद्रव्य बत्तीस सौमें-से घटानेपर शेष तेईस सौ चार रहे। उसमें गुणहानि आठसे भाग देनेपर दो सौ अट्ठासी पाये । यही आदि निषेकका प्रमाण है। उसमें एक-एक चय बत्तीस-बत्तीस बढ़ानेपर द्वितीयादि निषेकोंका प्रमाण होता है। इसी प्रकार द्वितीयादि गुणहानिमें चयका प्रमाण । आधा-आधा होनेसे चयधन भी आधा-आधा है। इसी तरह उनका सवेद्रव्य भी आधा. आधा है । उसमें घटानेपर जो शेष रहे उसमें गुणहानि आयामसे भाग देनेपर अपना-अपना आदि निषेक आता है। उसमें अपना-अपना एक चय मिलानेपर अन्य निषेक होते हैं ।
क-१६२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org