Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे __ आउदोंदु कारणदिदमुपरितनसमयभावंगळुमधस्तनभावंगळोडने समानंगळप्पुवद् कारणदिव प्रथमकरणमधःप्रवृत्त वितन्वय॑नाम पेळल्पटुदु ।
अंतोमुहुत्तमेत्तो तक्कालो होदि तत्थ परिणामा ।
लोगाणमसंखपमा उवरुवरि सरिसवढिगया ॥८९९।। ५ अंतर्मुहूत्तमात्रस्तत्कालों भवेत्तत्र परिणामाः। लोकानामसंख्यप्रमा उपयुपरि सदृशवृद्धिं गताः ॥
आ अधःप्रवृत्तकरणकालमंतर्मुहूर्तमात्रमक्कुमा कालदोळ संभविसुव विशुद्धिकषाय परिजामंगळुमसंख्यातलोकप्रमितंगळप्पुवल्लि प्रथमसमयानंतर द्वितीयसमयं मोवल्गोंडु मेले मेले
सदृशप्रचययुतंगळप्पुवु । अदें तें वोडे आ प्रथमादिसमयंगळो संभविसुव परिणामसंख्यानयन१० विधानमनंकसंदृष्टियिंदं पेन्वपरु :
बावत्तरितिसहस्सा सोलसचउचारि एक्कयं चेव ।
धण अद्धाणविसेसे तियसंखा होइ संखेज्जे ॥९००॥ द्वासप्ततित्रिसहस्राणि षोडश चतुश्चत्वारि एककं चैव । धनमध्वानविशेष त्रिकसंख्या भवति संख्येये ॥
अधःप्रवृत्तकरणसर्वपरिणामंगळ धनमें बुदा धनमंकसंदृष्टियोळु द्वासप्तत्युत्तरत्रिसहस्रं. गळप्पुवु। ३०७२ ॥ अध्वानमें बुदेरडु तेरनक्कुमल्लि अधःप्रवृत्तकरणकालमध्वाध्यानमक्कुमदक्के षोडशांकसंदृष्टियक्कुं । ऊ १६ । अनुकृष्ट यध्वानं तिर्यगध्वानमक्कुमवरल्लि संदृष्टि नाल्कुरूप.
यस्मात्कारणादुपरितनसमयभावा अधस्तनसमयभावः सह समाना भवन्ति तस्मात्कारणात्तत्प्रथम अधःप्रवृत्तमिति निर्दिष्टं ॥८९८॥
तस्याषःप्रवृत्तकरणस्य कालोऽतर्मुहूर्तमात्रो भवति । तत्र काले सम्भवन्तो विशुद्धिकषायपरिणामाः तलोकमात्राः सन्ति । ते च तत्प्रथमसमयमादि कृत्वा उपर्यपरि सर्वत्र सदशप्रवयवद्धया वर्धते ॥८९९।। तत्र तावदंकसंदृष्ट्या धनं द्वासप्तत्यपत्रिसहस्री ३०७२। ऊध्विानः षोडशांकः १६ । तियंगध्वानश्च
क्योंकि इस अधःप्रवृत्तकरणमें ऊपरके समय सम्बन्धी भाव नीचेके समय सम्बन्धी भावोंके समान होते हैं । अर्थात् जैसे किसी जीवके दूसरे-तीसरे आदि समयोंमें जैसा भाव १. होता है वैसा ही भाव कि ली जीवके पहले समयमें ही होता है। इससे इस पहले करणको
अधःप्रवृत्त कहते हैं ।।८९८॥
___ उस अधःप्रवृत्तकरणका काल अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है। उस कालमें होनेवाले विशुद्धतारूप कषायपरिणाम असंख्यात लोक प्रमाण हैं। वे परिणाम प्रथम समयसे लगाकर ऊपर-ऊपर सर्वत्र समान चयवृद्धिसे बढ़ते हुए होते हैं। अर्थात् पहले समयके परिणामोंसे दूसरे समयके परिणामोंमें जितनी वृद्धि होती है, दूसरे समयके परिणामोंसे तीसरे समयके परिणामोंमें भी उतनी ही वृद्धि होती है। इस प्रकार अन्तिम समय पर्यन्त वृद्धि होती जाती है ।।८९९॥
__उन्हें प्रथम अंकसंदृष्टि से दर्शाते हैं। सर्वधन तीन हजार बहत्तर है। ऊर्ध्वरूप गच्छका
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