Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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आयुषश्च आयुष्य कम्यं पूर्व्वकोटिवर्षं त्रिभागं मोदल्गोंड आ संक्षेपार्द्ध पय्यंतं समयोनक्रम विकल्पंगळप्पुवनितु विकल्पाबाधेगळप्पुवु । आयुषः आयुष्यकमक्क स्थितिप्रतिभागमिल्लमनुपातत्र राशिकं माडल्ड दें' बुदाथ में ते बोर्ड पूर्वकोटिवर्षायुष्यवर्क पूर्वकोटिवर्षत्रिभागमुत्कृष्टाबायालु त्रिपल्योपमाद्यायुष्यं गळगे निताबाधयक्कुर्म बुदु मोदलाद प्रतिभागमा पुष्य कर्म्मदोळिल्लें बुवत्थं । असंक्षेपार्द्धर्य बुर्द तें दोर्ड न विद्यते अस्मादन्यः संक्षेपोऽसंक्षेपः । स चासावद्धा चाऽसंक्षेपाद्वा एंदिताव लिय असंख्यातैकभागं सव्यं जघन्याबाधेया युष्कम्मंदोलक्कु मिल्लिदं किरिदि सर्व बु ॥
अनंतरमुदीरणयं कुरुत्तु आबार्धयं पेळदपरु :
आवलियं आबाहा उदीरणमासेज्ज सत्तकम्माणं ।
परभविय आउगस्स य उदीरणा णत्थि नियमेण ॥ ९९८ ॥
आवलिका आबाघोदीरणामाश्रित्य सप्तकर्मणां । परभवायुषश्चोदोरणा नास्ति नियमेन ॥ उदीरणेयं कुरुत्तु आयुर्व्वर्ज्जसप्तक मंगळलमेकावलिमात्र माबाधेयक्कु । परभवायुष्यक्क नियमविवमुवीरणे यिल्लेके दो डुदीरणे युदयप्रकृतिगळगल्ल दिल्लप्पुदरिदमी परभवायुष्यमें बुदु बध्यमानायुष्यमप्पुदरिदं भुज्यमानायुष्यक्कुदीरणेयुं तिय्यंग्मनुष्यायुष्यंगळगल्ल दिल्लल्लियुमौप
आयुष्कर्मणः आबाधा पूर्वकोटिवर्षत्रिभागादा असंक्षेपाद्धांताः एकैकसमयोनाः सर्वे विकल्पा भवन्ति, १५ न खलु स्थितिप्रतिभागमाश्रित्यायुषः साध्याः, पूर्वकोटिवर्षस्य तत्त्रिभाग आबाधा तदा त्रिपल्यस्य कियतीत्यादिना तदसिद्धेः । न विद्यतेऽस्मात्पर आयुराबाधायां संक्षेपः असंक्षेपः स चासावद्धा चासंक्षेपाद्वा ॥९९७॥ अथोदीरणां प्रत्याह
उदीरणाकी अपेक्षा आयु बिना सात कर्मोंकी आबाधा आवली मात्र है । बँधने के बाद यदि उदीरणा हो तो आवलीकाल बीतनेपर हो जाती है । किन्तु परभवकी बाँधी हुई
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उदीरणामाश्रित्यायुर्वजितसतकर्मणामाबाधा आवलिमात्री स्यात् । परभवायुषो नियमेनोदीरणा नास्ति
कर्म की बाधा एक कोटि पूर्व वर्ष के तीसरे भागसे लगाकर आसंक्षेपाद्धापर्यन्त २० एक-एक समय हीन सब भेद लिये हुए है। आयुकी आबाधा स्थिति के प्रतिभाग के अनुसार साध्य नहीं है । एक पूर्वकोटि वर्षकी आबाधा उसका त्रिभाग है तो तीन पल्की स्थिती आबाधा कितनी होगी । इस प्रकारसे स्थितिके प्रतिभागसे आयुकी आबाधाका प्रमाण सिद्ध नहीं होता; क्योंकि जितनी मुज्यमान आयु शेष रहनेपर परभवकी आयु बँधती है उतनी ही उसकी आबाधाका प्रमाण होता है । सो कर्मभूमि में आयुका त्रिभाग शेष रहनेपर, भोगभूमि - २५ में नौ मास और देव नारकी में छह मास आयु शेष रहनेपर परभवकी आयुके बन्धकी योग्यता होती है । अतः उत्कृष्ट आबाधा पूर्वकोटि वर्षका त्रिभाग है । जिससे आयुकी आबाधाका संक्षेप - हीनपना नहीं पाया जाता ऐसे अद्धा अर्थात् कालको 'आसंक्षेपाद्धा' कहते हैं । सो जघन्य आबाधा आसंक्षेपाद्धा प्रमाण होती है । यह उदयकी अपेक्षा आबाधा कही । बँधने के बाद यदि उदय हो तो इतना काल बीतनेपर ही होगा ||९१७॥
आगे उदीरणाकी अपेक्षा कहते हैं
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