Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका गळक्कुं । ४ । विशेष बुदु प्रचधमक्कुमा प्रचयं ऊर्ध्वप्रचयमेदु तिर्यक्प्रचयमेंदु मेरडु भेदमक्कुमल्लि ऊर्ध्वविशेषदोळु संदृष्टि नाल्कु रूपुगप्पुवु । ४ ॥ तिय्यंग्विशेष दोळेकरूपं संदृष्टियक्कं । १। प्रचयम साधिसुवल्लि त्रिसंख्य संख्यातक्के संदृष्टियक्कुं । ३१ ॥ यतागुत्तं विरलु :
आदिधणादो सव्वं पचयधणं संखभागपरिमाणं ।
करणे अधापवत्ते होदि त्ति जिणेहि णिद्दिजें ॥९०१॥ आदिधनात्सवं प्रचयधनं संख्यभागपरिमाणं । करणे अधःप्रवृत्ते भवेदिति जिनैग्निद्दिष्टं ॥
यिल्लियधःप्रवृत्तकरणदोळ आदिधनमें दं प्रचयधनमेंदु धनमित्तेरनक्कुमल्लि आदिधनमं नोडलु सव्वं प्रचयधनं सप्तविंशतिपंचभागमप्पुरिदं संख्यातेकभागप्रमाणमक्कु आदि धन
२५९२ २७
एंदितु जिनरिदं पेळल्पद्रुदु। अदेते दोडे इल्लि प्रचय धनमंतप्पल्लि मुन्नं प्रचयप्रमाणमरि यल्पडुगुमप्पुरि पदकदिसंखेण भाजिदे पचयदितिल्लि पदमेंबुदधःप्रवृत्तकरणकालप्रमाणमक्कुम १० दक्के पदिनारेंदु संदृष्टियपुरिदमदर कृतियनिदं १६ । १६ । पूर्वोक्त त्रिकसंख्यासंख्यादिदं
तुरंकः ४। ऊवविशेषोऽपि चतुरंकः ४ । तिर्यग्विशेषो रूपं १ । प्रचयसाधनसंख्यातस्येकः ३ ॥९००। __ अधःप्रवृत्तकरणे सर्व प्रचयधनं आदिधनतः संख्यातकभागमात्रं स्यात् २५९२ तद्यया-पद १६ ।
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प्रमाण सोलह । तिर्यगरूप गच्छ चार । ऊर्ध्वरूप विशेष चार। तिर्यगरूप विशेष एक । चयके साधनके लिए संयातका चिह्न तीन है ॥९००।
विशेषार्थ-करणके सब समय सम्बन्धी परिणामोंकी संख्या सर्वधन तीन हजार ' बहत्तर है । करणके काल में जितने समय हों, उनकी रचना ऊपर-ऊपर होती है अतः उसके समयोंके प्रमाणको ऊर्ध्व गच्छ कहा है। एक समयवर्ती किसी जीवके कितने परिणाम होते हैं, किसीके कितने होते हैं। इस प्रकार एक समयमें जितने खण्ड हों उनकी रचना बराबरमें करना । अतः उन खण्डोंका जो प्रमाण हो उसे अनुकृष्टिका तिर्यग् गच्छ कहते हैं । प्रति समय २० जितने परिणाम क्रमसे बढ़ते हैं उनको ऊर्ध्वरूप अनुकृष्टिको विशेष या चय कहते हैं। आगे चयका प्रमाण जाननेके लिए संख्यातसे भाग दिया जायेगा इससे अंक संदृष्टि में संख्यातका चिह्न तीनका अंक रखा है । तीनसे संख्यात जानना ॥९००॥
अधःप्रवृत्तकरणमें सर्व चयधन आदिधनके संख्यातवें भाग है। सब समयोंके चयके जोड़का जो प्रमाण होता है उसे चयधन कहते हैं। और जितना-जितना चय बढ़ता है उसको छोड़कर सब समयोंके आदिधनको जोड़नेपर जो प्रमाण हो उसे आदिधन कहते हैं। करण ११ सूत्रके अनुसार पदकी कृति और संख्यातले सर्वधनमें भाग देनेपर ऊर्ध्वचयका प्रमाण होता है। पद अर्थात् सोलहके कृति अर्थात् वर्ग दो सौ छप्पन और संख्यातका चिह्न तीनका भाग सर्वधन तीन हजार बहत्तरमें देनेपर चार पाये । यही ऊर्वचयका प्रमाण जानना। तथा
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