Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१२७३ भेदमुळ्ळोडमेकप्रकारविशुद्धिपरिणामयुतरप्परेके दोडनिवृत्तिकरणसमयत्तिगळ्गे परिणामांतरं संभविसदें बुदु तात्पथ्यं ॥
इंतु भगववहत्परमेश्वर चारुचरणारविवद्वंद्ववंदनानंदित पुण्यपुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरुमंडलाचार्यमहावादवादीश्वररायवादिपितामहसकलविद्वज्जनचक्रवत्ति श्रीमदभयसूरिचारुचरणारविंदरजोरंजितललाटपट्टश्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसारकर्नाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिक- ५ योळु कर्मकांड त्रिकरणचूलिकामहाधिकारं व्याख्यातमादुदु ॥
उरियोळ् शैत्यमनुग्रनोविनयमं वुवृत्तनोळसत्यमं दुरहंकारनोळिज्ययं जरठनोब्दक्षत्वमं पंदियो। मधुरधोरत्वमनाहंतागमसुधासंतृप्तनोळ्दोषमं
घोरेगट्टोडुपयोगशून्यने वलं पेन्गुं बुधं पेन्गुमे ॥ भवन्ति । तस्याघ्वानोंऽकसंदृष्टया चतुरंकः । अर्थसंदृष्ट्यांतर्मुहूर्तः ॥९१२॥
इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्तिविरचितायां गोम्मटसारापरनामपंचसंग्रहवृत्ती जीवतत्त्वप्रदीपिकाख्यायां कर्मकाण्डे त्रिकरणलिकानाम अष्टमोऽधिकारः ॥८॥
अतिशय निर्मल ध्यानरूप आगकी शिखाके द्वारा कमरूपी वनको जला देनेवाले होते हैं उन्हें अनिवृत्ति कहते हैं । उसका काल अंकसंदृष्टिसे चार है और अर्थ रूपसे अन्तर्मुहूर्त है ॥९१२॥ १५
इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहको भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अमयसूरि सिद्धान्तचक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमल रचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें त्रिकरणचूलिका नामक
आठवाँ अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥८॥
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