Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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प्रत्येकभंगमों १ | तदवस्तन चक्षुर्द्दर्शनादिगळोडर्न द्विसंयोगभंगंगलम्बु ५ । त्रिसंयोगंगळु पत्तु १० | चतुःसंयोगंगलु पत्तु १० | पंचसंयोगंगळट ५ । षट्संयोगमोंडु १ । कूडि भंगंग ३२ । यितु पदपदं प्रति द्विगुणद्विगुण भंगंगळागुत्तं योगि प्रत्येकपदंगल एदिनैवनय जीवपददोळ, प्रत्येक भंगमों दु १ । पंचदशसंयोग भंगमुमो टु १ । द्विसंयोगंगळ चतुर्द्दश संयोगंळ प्रत्येकं पदिनालकु १४|१४ | त्रिसंयोगभगंगळ, त्रयोदशसंयोगभंगंगळ, प्रत्येकं द्विरूपोनगच्छेय एकबार संकलन१४ लब्ध ९१ । ९१ । चतुसंयोगभंगंगळ द्वादश संयोग मंगंगळ १ प्रत्येकं त्रिदोनगच्छेय द्विकवार संकलन मात्रंगळवु । तच्छेय त्रिवार संकलनमात्रगपु लब्ध ३६४।३६४ | पंचसंयोग भंगंगळं एकादश संयोगभंगंगळु प्रत्येकं चतूरूपोन११/१२/१३/१४ लब्ध १००१ । १००१ ।
माळवु ।
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४ | ३ |२| १ | षट्संयोगंगल दश- १०
| १२|१३ | १४ १२/१४ | | ३ |२| १
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संयोग एकः । मिलित्वा षोडश ! दानलब्धी प्रत्येकभंग एकः । तदवस्तनाचक्षुरादिना द्विसंयोगाः पंच । त्रिसंयोगा दश । चतुःसंयोगा दश । पंचसंयोगाः पंच । षट्संयोग एक: । मिलित्वा द्वात्रिंशत् । एवं प्रतिपदं द्विगुणा भूत्वा पंचदशे जीवपदे प्रत्येकभंगः पंचदशसंयोगश्चकः । द्विसंयोगाश्चतुर्दशसंयोगाश्च चतुर्दश । त्रिसंयोगाः त्रयोदशसंयोगाश्च द्विरूपोन गच्छस्यैकवार संकलनमात्राः १३ । १४ । लब्धं ९९ । ९१ । चतुस्संयोगा
२ १
द्वादशसंयोगाश्च त्रिरूपोनगच्छस्य द्विकवारसंकलनमात्रा: १२ । १३ । १४ । लब्धं ३६४ । ३६४ । १५ ३ 1 २ । १
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कुश्रुत विभंग, या अचक्षु कुमति कुश्रुत विभंगके संयोगसे चार संयोगी भंग चार । तथा अचक्षु चक्षु विभंग कुश्रुत कुमति इन पाँचोंके संयोगसे पंचसंयोगी भंग एक । ये मिलकर सोलह हुए इसी प्रकार उसके ऊपर दान लब्धि रखो । उसका प्रत्येक भंग एक । और उसके नीचे चक्षुदर्शन आदि हैं । उनके संयोगसे दो संयोगी भंग पाँच । तीन संयोगी दस, चार संयोगी दस, पाँच संयोगी पाँच, छह संयोगी एक मिलकर बत्तीस हुए। इसी प्रकार ऊपरऊपर एक-एक पदको रखकर उनके भंग दूने दूने होते हैं । उनमें प्रत्येक संयोगी भंग तो एक होता है। और दो संयोगी आदि भंग नीचेके भावोंके संयोगके बदलनेसे जितने जितने हों उतने उतने जानना । सो लाभ लब्धि में चौंसठ, भोग लब्धिमें एक सौ अट्ठाईस, उपभोगमें दो सौ छप्पन, वीर्य में पाँच सौ बारह, मिथ्यात्व में एक हजार चौबीस, अज्ञानमें दो हजार अड़तालीस, असंयम में चार हजार छियानवे । असिद्धत्व में इक्यासी सौ बानवे, जीवत्व में सोलह हजार तीन सौ चौरासी भंग होते हैं । पन्द्रहवें जीवपद में इतने भंग कैसे होते हैं यह स्पष्ट करते हैं
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प्रत्येक भंग एक | दो संयोगी और चौदह संयोगी चौदह चौदह । तीन संयोगी और तेरह संयोगी भंग दो हीन गच्छ प्रमाणका एक बार जोड़ मात्र हैं । गच्छका प्रमाण पन्द्रह है। दो कम करनेसे तेरह रहे । एकसे तेरह तकका जोड़ इक्यानबे होता है सो इक्यानबे इक्यानवे भंग हैं। इसी तरह चार संयोगी और बारह संयोगी भंग तीन हीन गच्छका दो बार जोड़-मात्र हैं । सो तीन सौ चौंसठ तीन सौ चौंसठ भंग होते हैं । पाँच संयोगी और ग्यारह संयोगी भंग चार होन गच्छका तीन बार जोड़मात्र होनेसे एक हजार एक, एक
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