Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे मिश्रभावस्थानंगळोळे रडुं पारिणामिकभावस्थानंगळोळेरडुमंतु प्रत्येकभंगंगळ नाल्दु क्षेपंगळ. ळप्पुवु । प्र गु १। क्षे ४ । द्विसंयोगभंगंगळुमंते औवयिकभावस्थानदोलिट्टक्षबोडने मिश्रभावस्थानंगळे रडं पारिणामिकभावस्थानंगळेरडुमंतु द्विसंयोग भंगंगळु नाल्कुं गुणकारंगळप्पुवु शेषस्थानंगळ द्विसंयोगभंगंगळु मिश्रभावदशस्थानदोलिट्टक्षदोडने पारिणामिकभावस्थानंगळोळेर९ मत्तं ५ मिश्रभावनवस्थानदोलिट्टक्षं पारिणामिकभावस्थानंगळेरडरोळ रडु मंतु द्विसंयोगक्षेपंगळु
नाल्कप्पुवु । द्वि गु ४ । क्षे ४ । त्रिसंयोगदोउमंत मिश्रभावदशस्थानदोळं औदयिकभावाष्टस्थानदोळं पारिणाभिकभाव जीवभव्यत्ववोळमिती मूरडयोलिट्टक्षमोदु भंगमक्कु-। मा जीवभव्यत्वबोळिईक्षं जीवाभव्यत्वक्के संचरिसिदोडल्लियोंदु भंगं द्वितोयमक्कुं। मतं मिश्रभावदशस्यानदोक्षिं
नवस्थानक्के संचरिसिदोडदरोडनेयुमौदयिकाष्टस्थानदोळं पारिणामिकजीव भव्यत्वदो त्रिसंयोग१० तृतीयभंगमक्कु मा जीवभव्यत्वदोलिद्दर्श जीवाभव्यत्वक्के संचरिसिबोर्ड त्रिसंयोगचतुत्थंभंगमक्कु
मितु त्रिसंयोगगुणकारभंगंगळु नाल्कप्पुवु । त्रिसंयोगक्षेपंगळु संभविसवितु मिथ्यादृष्टियोळ, गुणकारभंगंगळो भत्तु क्षेपंगळे टप्पुवु । गुण्य २०४ । गु ९ । क्षे ८। लब्धभंगंगळ १८४४ । मत्तं चक्षरून मिथ्यादृष्टिगे | मि | औ| पा । इल्लि प्रत्येकभंगक्षेपमों देयककुमे दोडे औवयिक
अ२]
पारिणामिककंगळ प्रत्येक भंगंगळ पुनवक्तंगळप्पुवु । अदुकारणमागि। मत्तं द्विसंयोगगुणकार
१५ श्चत्वारः क्षेपाः । द्विसंयोगेऽष्टकेन दशकनवकयोी भव्यत्वाभव्यत्वयोः च गुणकाराः नवकदशकाम्यां भव्य
स्वाभव्यत्वयोद्वी द्वौ क्षेपाः। त्रिसंयोगे दशकेनाष्टकेनाष्टके भव्यत्वाभव्यत्वाम्यां द्वौ नवकेन च द्वौ गुणकाराः । क्षेपो नास्ति मिलित्वा प्रागुक्तचतुरद्विशत्याः गुणकारा नव क्षेपा अष्टौ । चक्षुख्ने तु तत्स्थानानोमानि
मिथ्यादृष्टि में मिश्रके दस और नवके दो स्थान, औदायिकका आठका एक स्थान और पारिणामिकके जीवत्व सहित भव्य-अभव्य रूप दो स्थान इस तरह पाँच स्थान हैं। तथा २० प्रत्येक भंग पाँच हैं उनमें से औदयिकका आठ स्थान रूप एक प्रत्येक भंग तो गुणकार है।
शेष दो मिश्रके और दो पारिणामिकके ये चार भंग क्षेप रूप हैं। तथा दो संयोगी भंगोंमें औदयिकके आठके स्थान सहित मिश्रके दस और नौके स्थान रूप दो भंग और पारिणामिकके दो भंग ये चार भंग तो गुणकार रूप हैं। मिश्रका दसके स्थान सहित पारिणामिकके
भव्य-अभव्य रूप दो स्थानोंके दो भंग तथा मिश्रका नौके स्थान सहित उसी पारिणामिकके २५ दो स्थानोंके संयोग रूप दो भंग ये चार क्षेप रूप हैं। त्रिसंयोगीमें औदयिकका आठका
स्थान और मिश्रका दसके स्थान सहित पारिणामिकके दो स्थानोंके दो भंग तथा औदयिकका आठका स्थान और मिश्रका नौका स्थान सहित पारिणामिकके दो स्थानोंके दो भंग, ये चार भंग गुणकार रूप हुए। यहाँ औदयिकके संयोगके बिना त्रिसंयोगी भंग नहीं बनता इससे त्रिसंयोगीमें क्षेप नहीं है। ये सब मिलकर नौ गुणकार और आठ क्षेप हुए। पूर्वमें
औदयिक भावोंके भंगोंको लेकर मिथ्यादृष्टि में दो सौ चार गुण्य कहा था। उसको गुणकार नौसे गुणा करनेपर अठारह सौ छत्तीस हुए। उसमें आठ क्षेप मिलानेपर अठारह सौ चौवालीस भंग हुए। चक्षुदर्शन रहित मिथ्यादृष्टिमें मिश्रका आठ रूप स्थान, औदायिकका
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