Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका
११७९ क्षे ५। त्रि ग ५ १२२। च गु २ । अंतु असंयतंगे गुण्य पूर्वोक्तभंग १८० । गु १२॥ क्षे ११ । लब्ध भंग २१७४ । क्षायिक सम्यग्दृष्टिगे |क्षा | मि | औ | पा । इल्लि प्रत्येकगुणकारं पुनरुक्त.
१ | १२| ७|भ
|१०| | मक्कुं। प्र। १ । द्वि गु १। शेषमंगंगळ पुनरुक्तंगळ । द्वि । क्षे३। त्रि गु३ । क्षे २। गु २ । अंतु क्षायिकासंयतंगे पूर्वोक्तगुण्यंगळ १०४ । गु ६ । क्षे६। लब्धमंगंगळ ६३० । उभयासंयतभंगंगळ २८०१ ॥ इल्लि उपशम सम्यक्त्ववोडनेयं क्षायिकसम्यक्त्वदोडनयु मिश्रभावस्था- ५ ग्दोलिई वेदकसम्यक्त्वं पोरगागि विवक्षितमदु निश्चैसुवुदु ॥ देशसंयतंगे|उ | मि |औ|पा
|१|१३|६|भ
।११/
०
इल्लि प्र गु १ । क्षे ४ । द्विगु ४ । क्षे ५। त्रिगु५ । क्षे २। च गु २। कूडि देशसंयतंगे गुण्यभंगंगळु पूर्वोक्तंगळु ७२ । गु १२ । क्षे ११ । लब्धभंगंगळु ८७५ । क्षायिकसम्यग्दृष्टि देशसंयतंगे
असंयते- उ । मि । औ । पा | प्र गु १ क्षे ४ । द्विगु ४ क्षे ५ । त्रिगु ५ क्षे २ । च गु
१ | १२ | ७ | भ
१० । २ मिलित्वा गुण्यं १८० गु १२ क्षे ११ भंगाः २१७१ । क्षायिकसम्यग्दृष्टो-क्षा | मि | औ | पा । अत्र प्रत्येकगुणकारः पुनरुक्तः । प्रक्षे १ । द्विगु
। १ । १२ । ७ । भ
१ शेषाः पुनरुक्ताः । द्वि क्षे ३ । त्रिगु ३ क्षे २ । चगु २ मिलित्वा गुण्यं १०४ । गु ६ । क्षे ६ भंगाः ६३० । उभये भंगाः २८०१ । अत्रोपशमक्षायिकसम्यक्त्वाभ्यां मिश्रभावस्थानं वेदकं विना विवक्षितं ।
असंयतमें औपशमिकका उपशम सम्यक्त्व रूप एक, मिश्रके बारह और दस ये दो, औदायिकका सात रूप एक तथा पारिणामिकका भव्यत्वरूप एक ऐसे पांच स्थान हैं। वहाँ १५ प्रत्येक भंगमें गुणकार एक क्षेप चार, दो संयोगीमें गुणकार चार क्षेप पांच, तीन संयोगी में गुणकार पांच क्षेप दो, चार संयोगीमें गुणकार दो। सब मिलकर गुणकार बारह और क्षेप ग्यारह हुए। पूर्वोक्त गुण्य एक सौ अस्सीको बारहसे गुणा करके ग्यारह जोड़नेपर सब भंग इक्कीस सौ इकहत्तर होते हैं । क्षायिक सम्यग्दृष्टीके क्षायिकका क्षायिक सम्यक्त्व रूप एक, मिश्रके बारह और दस ये दो, औदायिकका सात रूप एक, पारिणामिक का भव्यत्व एक इस २० प्रकार पांच स्थान हैं। वहां प्रत्येक भंगमें एक क्षेप, दो संयोगीमें गुणकार एक क्षेप तीन, तीन संयोगीमें गुणकार तीन क्षेप दो, चार संयोगीमें गुणकार दो हैं। शेष गुणकार और क्षेप पुनरुक्त होते हैं। सब मिलकर गणकार छह और क्षेप छह हुए। पूर्वोक्त गण्य एक सौ चारको छहसे गुणा करके छह जोड़नेपर सब भंग छह सौ तीस होते हैं। दोनोंको मिलानेपर असंयतमें सब भंग अठाईस सौ एक होते हैं। यहाँ उपशम सम्यक्त्व और क्षायिक २५ सम्यक्त्वके साथ मिश्र भाव स्थान वेदक सम्यक्त्वके बिना विवक्षित हैं।
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