Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
११९५ क्षे ३ । कूडि देशसंयतंगे गुण्य ६ । गु ३२ । क्षे ३४ । लब्ध भंग २२६ ॥ प्रमत्तसंयतंगेयु मिते गुण्य ६ । गु ३२ । क्षे ३४ । लब्धभंग २२६ ।। अप्रमत्तसंयतंगयुमिते गुण्य ६ । गु ३२ । क्षे ३४ । लब्ध भंग २२६ ॥ अपूर्वकरणोपशमकंगे | उपश । क्षायि । मिश्र औवह । पारि ।
स चा । सं १ । णा । द ल।।६। । भ१ यिल्लि उफामकापूर्वकरणंगे गुण्य ६ । प्रगु १।७। द्विगु ७ । क्षे १६ । त्रि गु १६ । क्षे १३ । च गु १३ । क्षे ३। पंग ३ । स्व संक्षे ३ । कूडि अपूर्वकरणंगे गुण्य ६ । गु ४० । क्षे ४२ । लब्ध ५ भंग २८२ । सवेदानिवृत्तिकरणोपशमकंगयुमिते गुण्य ६ । गु ४० । क्षी ४२। लब्ध भंग २८२ ॥ अवेवानिवृत्तिकरणोपशमकंगे |उपशक्षायि|मिश्र औव पारि इल्लि अ वेदानिवृत्तिगे
| सं|चा सं १णावं ल | ५| भ | गुण्य ५। प्र गु १।२७ । विगु ७ । क्षे २६ । त्रिग १६ । क्षे १३ । च ग १३ । क्षे३। पंगु ३ । स्वसं क्षे३ । डि गुण्य ५ग ४० । क्षे ४२ । लब्धभंग २४२। इल्लि अनिवृत्तिकरणंगे कषाय. ८ द्विगु ८ क्षे १५ । त्रिगु १५ क्षे ८ चगु ८ स्वसंक्षे ३ मिलित्वा गुण्यं ६ गु ३२ क्षे ३४ भंगाः २२६ । १० उपशमकेष्वपूर्वसवेदानिवृत्तिकरणयोः
उपश | क्षा | मिथ औशपा। गुण्य ६.
।सं। चा | सं१णा । दं। ल | ६ | म । प्रगु १ ७ द्विगु ७ क्षे १६ त्रिगु १६ क्षे १३ चगु १३ मे ३ पंगु ३ स्वसंक्षे ३ मिलित्वा गुण्यं ६ गु ४० ले ४२ भंगा: २८२ । अवेदभागसूक्ष्मसाम्पराययोः | उपश | क्षा | मिश्र औ| पा | गुण्यं ५ प्रगु १ क्षे
सं। चा| सं १ | णा । दं। ल | ५ | भ
गुणकार आठ, क्षेप पन्द्रह हैं। तीन संयोगीमें गुणकार पन्द्रह क्षेप आठ हैं। चार संयोगीमें १५ गुणकार आठ हैं। स्वसंयोगीमें क्षेप तीन हैं। सब मिलकर गुण्य छह, गुणकार बत्तीस, क्षेप चौंतीस होनेसे भंग दो सौ छब्बीस हैं।
___ उपशम श्रेणीमें अपूर्वकरण और वेद सहित अनिवृत्तिकरणमें औपशमिकके दोसम्यक्त्व और चारित्र, क्षायिकका एक सम्यक्त्व, मिश्रके तीन ज्ञान दर्शन लब्धि, औदयिकके छह और पारिणामिकका एक भव्यत्व ये जातिपद हैं। यहाँ गुण्य छह हैं। प्रत्येक भंगमें २० गुणकार एक, क्षेप सात हैं। दो संयोगीमें गुणकार सात क्षेप सोलह हैं। तीन संयोगीमें गुणकार सोलह क्षेप तेरह हैं। चार संयोगीमें गुणकार तेरह क्षेप तीन हैं। पाँच औपशमिक संयोगीमें गुणकार तीन हैं। यहाँ क्षायिक सम्यक्त्वके साथ चारित्र होनेसे पाँच संयोगी भी होता है । स्वसंयोगीमें क्षेप तीन हैं। सब मिलकर गुण्य छह, गुणकार चालीस और क्षेप बयालीस होनेसे भंग दो सौ बयासी होते हैं।
२५ वेद रहित अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्परायमें औपशमिक दो सम्यक्त्व और चारित्र, क्षायिक एक सम्यक्त्व, मिश्र तीन ज्ञान दर्शन लब्धि, औदायिक पाँच, पारिणामिक एक भव्यत्व ये जातिपद हैं। गुण्य पाँच हैं। प्रत्येक भंगमें गुणकार एक क्षेप सात हैं । दो संयोगीमें गुणकार सात क्षेप सोलह हैं । तीन संयोगीमें गुणकार सोलह क्षेप तेरह हैं। चार
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