Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदोपिका
९३१ णाम धुओदय बारस गइजाईणं च तसतिजुम्माणं ।
सुभगादेज्जजसाणं जुम्मेक्कं विग्गहे वाणू ।।५८८॥ नाम ध्रुवोदया द्वादश गतिजातीनां च त्रसत्रियुग्मानां सुभगादेययशसां युग्मैकं विग्रह एवानुपूव्यं ॥
"तेजदुगं वण्णचऊ थिरसुहजुगळ गुरुणिमिण धुवउदया" एंब नाम ध्रुवोदयप्रकृतिगळु ५ पन्नेरडुं चतुर्गतिगळोळं पंचजातिगोळं त्रसस्थावरबादरसूक्ष्मपर्याप्रापर्याप्तत्रियामंगळोळं सुभगदुर्भगादेयानादेययशस्कोर्त्ययशस्कोत्तिगळेब युग्मत्रयदोळो दो दुगळु विग्रहगतियोळे आनुपूय॑चतुष्कबोळो दुदयक्केबक्कुं। विग्रहगतियोळल्लदे ऋजुपतियोळानुपूर्योदयमिल्ले बुदयंमा ऋजुगतियोळु चतुविशत्यादिगळक्कुं ॥
मिस्सम्मि तिअंगाणं संठाणाणं च एगदरगं तु ।
पत्तेयदुगाणेक्को उवघादो होदि उदयगदो ॥५८९।। मिधे व्यंगानां संस्थानानां चैकतरं तु । प्रत्येकद्वयोरेकमुपघातो भवत्युदयगतः॥
त्रसस्थावरंगळ शरीरमिश्रकालदोळौदारिकवैक्रियिकाहारकगळेब शरीरत्रयदोळं षट्संस्थानंगळोळमेकतरमुं तु मत्ते प्रत्येक साधारणद्वयदोळेक प्रकृतियुमुदयागतोपघातनामकर्ममुं
तेजदुगं वण्ण चऊ थिरसुहजुगलागुरुणिमिणेति नामध्रुवोदयाः द्वादश, चतुर्गतिषु पंचजातिषु त्रस- १५ स्थावरयो दरसूक्ष्मयोः पर्याप्तापर्याप्तयोः सुभगदुर्भगयोरादेयानादेययोर्यशस्कीय॑यशस्कीयोः चतुरानुपूर्येषु चकैकमित्येकविंशतिकं तदानुपूर्व्ययुतत्वाद्विग्रहगतावेवोदेति न जुगतो तस्यां चतुविशतिकादीनामेवोदयात् ॥५८८॥
पुनस्तस्मिन्नेकविंशतिके यानुपुर्व्यमपनीय औदारिकादित्रिशरीराणां षटसंस्थानानां चैकतरं प्रत्येकसाधारणयोरेकं उपघातश्चेति चतुष्क मुदयगतं मिलितं तदा चविंशतिक भवति । तच्च सस्थावरमिश्रकाले २० एवोदेति ॥५८९॥
तैजस, कार्मण, वर्णादि चार, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, अगुरुलघु, निर्माण ये बारह नाशकर्मकी ध्रुवोदयी प्रकृतियाँ हैं। इनका उदय सबके निरन्तर पाया जाता है। चार गतियोंमें, पाँच जातियोंमें, बसस्थावरमें, बादरसूक्ष्ममें, पर्याप्तअपर्याप्तमें, सुभगदुर्भगमें, आदेयअनादेयमें, यशःकीर्ति अयशःकीर्तिमें और चार आनुपूर्वीमें-से एक-एकका ही उदय २५ होता है। ऐसे इक्कीस प्रकृति रूप स्थानका विग्रहगतिमें ही उदय होता हैं क्योंकि आनुपूर्वीका उदय विग्रह गतिमें ही होता है । ऋजुगतिमें इक्कीसके स्थानका उदय नहीं है उसमें चौबीस आदिका ही उदय है ।।५८८।।
उस इक्कीसके स्थानमें आनुपर्वीको घटाकर औदारिक आदि तीन शरीरों में से एक, छह संस्थानों में से एक, प्रत्येक और साधारणमें से एक, तथा उपघात ये चार मिलानेपर ३० चौबीसका उदयस्थान होता है । यह त्रस और स्थावरके शरीरमिश्रकालमें उदय होता है ।।५८९।।
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