Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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११३०
मिया | १०
१५
१३
३
११
१ | ३
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१४
१५
३ | ३ |२
असं ९ | १० ११ | १२ | १३
१२ | १३ | १४ | १५
५ ६
६ / ६
१६
प्रगत ५ ६ ७ अप्रमत्त
१ | १ | १
मिश्र
१७
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१
असंयत
गो० कर्मकाण्डे
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१४ | १५ | १ | २ ३ | ३ | ३ | ३ |२| १ | शेषप्रमत्त संयतादिगळोळेल मेकैकभेदमेयक्कुं ॥
मिश्र |
९
| १
अनंतरं कूटप्रकारंगळं पेव्दपरु :
१६ १७ । १८
५ | ३ | १ |
| १० |
| २
१६ | देश सं
२
१
११ |
३
१०/११/१२/१३/१४/१५/१६/१७/१८ १| ३ | ५ | ६| ६| ६| ५| ३ | १
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भयदुगरहियं पढमं एक्कदरजुदं दुसहियमिदि तिष्णि ।
सामण्णा तियकूडा मिच्छा अणहीणतिणि वि य ।।७९४।।
भयद्विकरहितं प्रथमं एकतरयुतं द्विसहितमिति श्रोणि । सामान्यानि त्रिकूटानि मिथ्यादृष्टिसंबंधोनि अनंतानुबंधिहीन त्रीण्यपि च ॥
त्रित्रिप्रकाराणि । प्रमत्तादीनां सर्वस्थानान्ये कैकप्रकाराणि ॥ ७९३ ॥ अथ कूटप्रकारानाह
अन्तका स्थान तो एक-एक प्रकारका है तथा दूसरा और अन्तके-से लगता निचला स्थान दोदो प्रकारका है । इनके मध्य जितने स्थान हैं वे सब तीन प्रकारके हैं। प्रमत्तादिके सब ही १० स्थान एक प्रकारके हैं ||७९३ ||
मिथ्यात्व -
श्री. स.
सासा.
१२ |
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५ | ६ | ७ | अपू० | ५ | ६ | ७| अनि |२| ३|| राउ १| क्षी १ | सयो १ | १ | १ |१| | १|१| १ | | १ | १| |१| १ | १
१० | ११ | १२
१ | २ | ३
१३
३ | ३
सासादन - १०|११|१२|१३|१४|१५ | १६/१७ १| २| ३ | ३ | ३ | ३| २| १ ९|१०|११|१२|१३|१४|१५/१६ १ | २| ३ | ३ | ३ | ३| २ | १ ९/१०/११/१२/१३ | १४|१५|१६| _१| २| ३| ३| ३| ३| २| १ देशसंयत - ८| ९|१०|११|१२| १३ | १४ | प्रमत्तादि तीन ५/६/७ | १ |१ |१
१| २| ३ | ३ | ३| २| १
अनिवृ.
१
२ | ३ |सूक्ष्म १ | १
१
इन स्थानोंके जानने के लिए कूटोंके प्रकार कहते हैं
| १४ | १५ | १६
| ३ |२| १
८|९ | १०|११|१२|१३|१४
| १ | २ | ३ | ३ | ३ | २ | १
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