Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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भजुगुप्साद्वयरहितं प्रथमकूटमक्कुं । भयजुगुप्सान्यतरयुतं द्वितीयकूटमक्कु । भयजुगुप्साद्वययुतं तृतीय कूटमक्कुमितु सामान्यदिदं मूलकुटंगळु मूरप्पुवु ॥ मिथ्यादृष्टिगनंतानुबंधिसहित कूटंगळ मूरु मनंतानुबंधिरहितकूटंगळ मूरुमंतु षट्कूटंगळप्पुवु । सासादनंग मिध्यात्वपंचक रहित सामान्यत्रिकूटंग अप्पूवु । मिश्रंगे मिथ्यात्वपंचकमुमनंतानुबंधियु मिश्रयोगत्रयमुं रहितमागि सामान्यमूलकूटंगळु मूरप्पुवु । असंयतंगें मिश्रनं त्रिकूटंगळप्पुवादडं मिश्रयोगत्रयमुं संभवितुं । देशसंयतंर्ग पंचमिथ्यात्व मुमनंतानुबंध्य प्रत्याख्यान कषायद्वयमुं त्रसासंयममुं वैक्रियिककाययोगमुं पोरगागि मिश्रयोगत्रयमुं पोरगागिय त्रिकूटंगळप्पुवु । प्रमत्तसंयतंगे संज्वलनचतुष्टय वेदत्रय द्विकद्वय नवयोगंगळोळाहारद्वयमुं कूडि पन्नों दुयोगयुत त्रिकूटंगळवु । अप्रमत्तकंगाहारक द्विकरहित प्रमत्तन त्रिकूटंगळेयप्पुवु । अपूर्वकरणंगमप्रमत्तन त्रिकूटं गलेघप्पुवु । अनिवृत्तिकरणं भागे पर्यंत मक्कु । सूक्ष्मसांपरायंगे सूक्ष्मलोभमुं नवयोगंगळमप्पुवु । उपशांत क्षीणकषायरुगगे नव नव योगंगळेयप्पुव । सयोगकेवलिंग सप्तयोगंगळप्पुवु । अयोगियोळ योगं शून्य
मक्कु । संदृष्टि :
पंच मिथ्यात्वानि षडिद्रियाण्येकद्वित्रिचतुष्पंच षट् कायवधान् चत्वारि क्रोधादिचतुष्काणि त्रीन्वेदान् हास्ययुग्मारतियुग्मे आहारकद्वयं विना त्रयोदशयोगांश्चोपर्युपरि तिर्यग्रचयित्वा इदं भयजुगुप्सारहितं प्रथमं, तदन्यतरयुतं द्वितीयं तद्वययुतं तृतीयमिति सामान्यमूलकूटानि त्रीणि । अनन्तानुबन्ध्यूनानि च त्रीणि मिलित्वा १५ मिथ्यादृष्टौ षड् भवन्ति । सासादने तानि सामान्यकूटानि पंच मिथ्यात्वोनानि । मिश्र एतानि चतुरनन्तानुबन्धि
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कूटोंके आकार रचना करके सबसे नीचे पाँच मिध्यात्व एक-एक करके बराबर स्थापित करो; क्योंकि एक जीवके एक कालमें एक ही मिध्यात्व होता है । उनके ऊपर पाँच इन्द्रिय और एक मन इन छह में से एक जीवके एक कालमें एक ही की प्रवृत्ति होती है सो छह जगह एक-एक लिखो । उनके ऊपर छह कायकी हिंसा में से एक जीव एक समय में एक २० काकी हिंसा करता है या दो-तीन, चार, पाँच, छहकायकी हिंसा करता है सो एक, दो, तीन, चार, पाँच, छह के अंक क्रमसे बराबर में लिखना । उनके ऊपर सोलह कषायोंमें-से एक जीवके एक काल में अनन्तानुबन्धी आदि चार क्रोधोंका या चार मानोंका या चार मायाका या चार लोभोंका उदय पाया जाता है सो इनको स्थापित करना । अर्थात् चार जगह चारके अंक लिखो । उनके ऊपर तीन वेदों में से एक जीवके एक समय एक वेदका ही २५ उदय होता है सो तीन जगह एक-एक लिखो । उनके ऊपर एक जीवके एक समय में हास्य रति या शोक अरतिका उदय होता है सो दो जगह दोके अंक लिखो । उनके ऊपर पन्द्रह योगों में से आहारकद्विक मिध्यादृष्टिके नहीं होता अतः तेरह योगों में से एक जीवके एक समय में एक ही योग पाया जानेसे तेरह जगह एक-एक का अंक लिखना । इस प्रकार से तीन कूट करो । उनमें से पहला कूट भय जुगुप्सासे रहित है अतः ऊपर बिन्दी लिखो 1 दूसरा कूट भय जुगुप्सा में से एक सहित है इससे ऊपर-ऊपर दो जगह एकका अंक लिखो । तीसरा कूट भय जुगुप्सा दोनोंसे सहित है अतः ऊपर दोका अंक एक जगह लिखो। क्योंकि किसी जीव के किसी कालमें भय जुगुप्सा दोनों नहीं होते, या दोनोंमें कोई एक होता है या दोनों ही होते हैं। यथा
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