Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
११६३ द्विसंयोगंगळो भत्तेयप्पुर्व ते दोडे आ नाल्कु गुणस्थानोळु उपशमक्षायिकंगळ द्विसंयोग विरुद्धमप्पुदरि ना भंगकुंदिवोडों भत्ते भंगंगळप्पुवप्पुदरिद, त्रिसंयोगभंगंगळुमंतेयुपशमक्षायिकयुतत्रिसंयोगमं बिटु शेष सप्तभंगमप्पुवु । ७॥ चतुःसंयोगभंगगळेरडेयप्पुर्व ते दोडुपशमयुतमागियो दु | उ | क्षा | मि | औ | पा क्षायिक भावदोडनों दक्कुं।|उ |क्षा | मि | औं |पा | इतरडु ॥ | + + + + पंचसंयोगभंग मोनाल्कुं गणस्थानदोळ संभविसके दोर्ड कारणं द्विसंयोगत्रिसंयोगदोळु पेन्दुदेयक्कुं। ५ ई परसंयोगभंगंगळगे संदृष्टि प्र५ । द्वि ९ । त्रि ७। च २। स्वसंयोगभंगं मिश्रदोळमौदयिकदोळं पारिणामिकोळं मूरे भंगमक्कु-३ । मिता नाल्कुं गुणस्थानंगळोळ प्रत्येक मूलभावंगळग्दुं परस्व. संयोगभंगंगळुमिप्पत्तारप्पुवु । असं मू भा ५ । भं२६ । देशसंयतंग मू।भा ५ । भं २६ । प्रमत्तसं मू । भा५ । भंग २६ । अप्रमत्त मू । भा ५ । भंग २६ । उपशमश्रेणियोळ मूलभावंगळय्दुं संभविसुववल्लि परसंयोग भंगं प्रत्येक संयोगभंगंगळग्दु ५। द्विसंयोगभंगंगळ पत्तं १० । त्रिसंयोगभंगंगळ १०। १० चतुःसंयोगभंगमयदु ५। पंचसंयोगभंगमोंदु १। स्वसंयोगभंगं क्षायिकदोळ, क्षायिकभंगमं बिटु शेष नाल्कु ४ भंगमक्कु । यितु आ नाल्कु गुणस्थानंगळोळ प्रत्येक मूलभावभंगमग्दुं । ५ । परस्वसंयोगभंगंगळ मूवत्तरदप्पुवु ३५ । संदृष्टि-अपूर्व मूभा ५। भंग ३५ । अनिवृत्तिकरणंगे मू संयोगात् । त्रिसंयोगाः सप्त । चतुःसंयोगा औपशमिकक्षायिकाभ्यां द्वौ । पंचसंयोगो नास्ति । स्वसंयोगा मिश्रीदयिकपारिणामिकास्त्रयः । एवं परस्वसंयोगाः षविशतिः । उपशमकचतुष्के मूलभावाः पंच पंच । तत्र १५ परसंयोगे प्रत्येकभंगाः पंच । द्विसंयोगा दश । त्रिसंयोगा दश । चतुःसंयोगाः पंच। पंचसंयोग एकः ।
असंयतादि चार गुणस्थानोंमें मूलभाव पांच-पाँच होते हैं। पूर्वोक्त विधानसे प्रत्येक भंग तो पाँच ही हुए। द्विसंयोगी दस होते हैं। किन्तु यहाँ औपशमिक क्षायिकका संयोगरूप एक भंग नहीं है । अतः नौ हैं। त्रिसंयोगी भंग दस होते हैं । किन्तु यहाँ औपशमिक क्षायिक
और एक औदयिक वा झायोपशमिक वा पारिणामिकमेंसे कोई एक इन तीनके संयोग रूप २० तीन भंग न होनेसे सात ही हैं। चतुःसंयोगी पाँच होते हैं किन्तु उनमेंसे औपशमिक क्षायिक और दो औदयिक क्षायोपशमिक अथवा भायोपशमिक पारिणामिक अथवा औदायिक पारिणामिकमें-से इनके संयोग रूप तीन भंग यहाँ नहीं होते। अतः दो ही हैं। यहाँ उपशम
और क्षायिकका मिलन न होनेसे पंचसंयोगी भंग नहीं होता। स्वसंयोगी भंग तीन हैंमिश्रमें मिश्र, औदयिकमें औदयिक, पारिणामिकमें पारिणामिक। यहाँ उपशम सम्यक्त्वमें २५ उपशमचारित्र और क्षायिक सम्यक्त्वमें क्षायिकचारित्र सम्भव न होनेसे औपशमिकमें । औपशमिक और क्षायिकमें क्षायिक ये दो भंग नहीं कहे। सब मिलकर छब्बीस भंग हुए।
उपशमश्रेणीके चार गुणस्थानोंमें पाँच-पाँच मूलभाव हैं। उनमें परसंयोगीमें प्रत्येक भंग पाँच, द्विसंयोगी दस, त्रिसंयोगी दस, चतुःसंयोगी पाँच और पंचसंयोगी एक भंग होता है। यहाँ क्षायिक सम्यक्त्वके होते उपशमचारित्र होता है अतः उपशम और क्षायिक- ३० का संयोग जानता। स्वसंयोगीमें क्षायिकमें क्षायिक सम्भव नहीं है, क्योंकि यहाँ क्षायिक सम्यक्त्वके साथ अन्य क्षायिकभाव नहीं होता। अतः चार ही भंग होते हैं। सब पैतीस भंग हुए।
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