Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
१०९०
गो० कर्मकाण्डे
म । स ९२ । ९० ।। असंयतरुगन उ २९ । बं २९ । म । ३० । म ती । स ९३ । ९२ । ९१ । ९० ।। अनुविधानुत्तरचतुर्द्दश विमानजरुगळ निबरं सम्यग्दृष्टिगळेयप्पुदर दं तत्रत्यरुगन उ २९ ॥ बं २९ ॥ म ३० । म ती । स ९३ । ९२ । ९१ । ९० ।। यितु नववंशतिस्थानोदयाधिकरणवोळु बंघसस्वस्थानंगळ योजिसल्पटुवनंतरं त्रिशत्प्रकृतिस्थानोदयाधिकरणदोळु बंधसत्त्वस्थानंगलं योजिस पडुगुम• ५ वर्त बोर्ड – त्रिशत्प्रकृतिस्थानोदयं तिग्मनुष्यगतिद्वयजरोळेयक्कुं । नरक देवगति जरुगळोळवययोग्यमते तेवोडे संहननोवययुत्तस्थानमप्पुर्दारवमल्लि तिय्यंग्गतिजरोळ च्छ्वास निश्वासपर्य्याप्तियो द्योतयुतमागियुमुद्योतरहित भाषापर्य्याप्तियोळु सुस्वर दुस्वरान्यतरोदययुतमागियुं मेणु त्रिशत्प्रकृतिस्थानोदयमक्कु । मल्लियुद्योतयुतमागि मिथ्यादृष्टियोळ उ ३० । बं २३ । २५ ॥ २६ ॥ २८ । २९ । ३० ।। स ९२ । ९० । ८८ । ८४ । सासादनंगं मिश्रंगं त्रिशत्प्रकृतिस्थानोदयं संभविसदु ॥ १० असंयतंगे उ ३० । बं २८ दे । स ९२ । ९० ॥ देशसंयतंगे तदुदयं संभविसदु । भाषापर्य्याप्तियो
धोतरहितमागि मिथ्यादृष्टियोळु उ ३० । बं २३ । २५ | २६ | २८ | २९ | ३० || स ९२ । ९० । ८८ । ८४ ।। इल्लियष्टाशी तिचतुरशीतिसत्त्वस्थानंगळ विकलत्रयजी बंगळपेक्षयिदं सत्त्वसंभवमरि
उ, स ९०, मिश्रे उ २९, बं २९ म, स९२, ९०, असंयते उ२९, बं २९ मती, स९३, ९२, ९१, ९०, उपरिमग्रैवेयकान्तेषु मिथ्यादृष्टो उ२९, बं २९ म स ९२, ९०, सासादने उ२९ बं २९ म, स९० । मिश्र १५ उ२२, बं २९, म स ९२, ९० । असंयते उ२९, बं २९ म, ३० म तो, स ९३, ९२, ९१, ९० । अनुदिशानुत्तरासंयते उ२९, बं २९ म, ३० मती, स ९३,९२,९१९० । त्रिंशत्कं तिर्यग्मनुष्ययोरेव संहननयुतत्वात् । तत्र तिर्यक्षूच्छ्वासपर्याप्ता वुद्योतयुतं । तत्र मिध्यादृष्टौ उ ३०, बं २३, २५, २६, २८, २९, ३०, स ९२, ९०, ८८, ८४ । न सासादनमिश्रयोः । असंयते उ ३०, बं २८ दे, स९२, ९० । न देशसंयते । भाषापर्यात उद्योतवियुतसुस्वरदुः स्वरान्यतरयुतं । तत्र मिथ्यादृष्टी उ३०, बं २३, २५, २६, २८, २९
२० उनतीस या तिर्यच उद्योत सहित तीसका सत्व बानबे, नब्बेका है । सासादनमें बन्ध मध्यादृष्टि के समान और सत्व नब्बेका है। मिश्र में बन्ध मनुष्य सहित उनतीसका सत्त्व बानबे, नब्बेका है । असंयत में बन्ध मनुष्य सहित उनतीस या मनुष्य तीर्थसहित तीसका सत्त्व तिरानबे आदि चारका है । उपरिम मैवेयक पर्यन्त मिध्यादृष्टि में बन्ध मनुष्य सहित उनतीसका सत्त्व बानबे - नब्बेका है । सासादन में बन्ध मनुष्य सहित उनतीसका सत्त्व नब्बे२५ का है । मिश्र में बन्ध मनुष्यसहित उनतीसका सत्त्व बानबे - नब्बेका है । असंयतमें बन्ध मनुष्य सहित उनतीस या मनुष्य तीर्थसहित तीसका और सत्व तिरानबे आदि चारका है। अनुदिश अनुत्तर में असंयत में बन्ध मनुष्यसहित उनतीस या मनुष्य तीर्थसहित तीसका है और सत्व तिरानबे आदि चारका है ।
1
तीसका उदय तिर्यंच और मनुष्योंके ही है क्योंकि इसमें संहननका भी उदय ३० सम्मिलित है । उनमें भी तियंचों में उच्छ्वास पर्याप्ति में उद्योत सहित तीसका उदय होता है । वहाँ मिध्यादृष्टि में बन्ध तेईस, पच्चीस, छब्बीस, अठाईस, उनतीस, तीसका है। सत्त्व बानबे, नब्बे, अठासी, चौरासीका है । सासादन मिश्र में यह उदय नहीं है । असंयत में बन्ध देव सहित अठाईसका सत्त्व बानवे, नब्बेका है । देशसंयतमें यह उदय नहीं है । वियं चोंमें भाषा पर्याप्ति उद्योत रहित और सुस्वर - दुःस्वर में से एक सहित भी तीसका उदय होता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org