Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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विक्कत्रयंगळे दुं प्रत्ययंगळुर्म दु मन्वर्थंना मंगळप्पुवु । तद्भेदाः अवरभेदंगल यथाक्रमविदं पंच द्वादशपंचविंशतिपंचदश प्रमितंगळप्पुर । संदृष्टि । मि ५ । अ१२ । २५ । यो १५ । कूडि ५७ ॥ अनंतरमी मूलप्रत्ययंगळु नाल्कुमं मिथ्यादृष्टयावि गुणस्थानंगळोळ संभबंगळ
पेदपरु :
चदुपच्चइगो बंधो पढमेऽणंतरतिगे तिपच्चइगो । मिस्सगबिदियं उवरिमदुगं च देसेक्कसम्म || ७८७॥
चतुः प्रत्ययिको बंधः प्रथमे अनंतर त्रिके त्रिप्रत्ययिकः । मिश्रकद्वितीयमुपरितनद्विकं च देशैकदेशे ॥
प्रथमे मिथ्यादृष्टियोळु चतुः प्रत्ययिकमप्प बंधमक्कुं । चतुः प्रत्ययिक में बुदे ते बोर्ड चत्वारः प्रत्ययाश्चतुःप्रत्ययास्ते संत्यस्मिन्निति ठप्रत्यये चतुःप्रत्ययिकः । मिथ्यात्वाऽविरमण कषायोग ब नाल्कुं प्रत्ययंगळनुळ्ळ बंधमक्कुमे बुदथंमनंतरत्रये सासादनमिश्रा संपतरुगळे व अनंतर गुणस्थानarata त्रिः प्रत्ययिको बंधः मिथ्यात्वभेदरहितमागि अविरमणकषाययोगमें ब त्रिप्रत्ययिक बंधमक्कुं । देशैकदेशे देशसंयतनो देशसंयतंर्ग देशकदेशत्वमे ते बोर्ड वेशेन लेशेन एकमसंयमं विशति परिहरतीति देशैकदेशस्तस्मिन्न वितु ई निरुक्तिसिद्धमप्युदरिंगमा देशसंयतनो त्रिप्रत्ययिक
कर्मरूपतां कार्मणस्कन्धा एभिरिति कारणात् । तेषां भेदाः क्रमेण पंच द्वादश पंचविंशतिः पंचदश च भवन्ति । १५ मिलित्वोत्तरप्रत्यया अमी सप्तपंचाशत् ||७८६ ॥ अथ मूलप्रत्ययान् गुणस्थानेष्वाह
मूलप्रत्यया गुणस्थानेषु मिथ्यादृष्टो बन्धश्चतुष्प्रत्ययिकः । सासादनादित्रये मिथ्यात्वं विना त्रिप्रत्ययिकः । देशेन लेशेन एकमसंयमं दिशति परिहरतीति देशैकदेशः वेशसंयतः । तत्रापि त्रिप्रत्ययिकः । ते प्रत्यया
इनके द्वारा कार्मणस्कन्ध 'आस्रवन्ति' अर्थात् कर्मरूपताको प्राप्त होते हैं । उनके भेद क्रमसे पाँच, बारह, पच्चीस, पन्द्रह होते हैं। सब मिलकर सत्तावन उत्तर प्रत्यय होते हैं || ७८६ ॥
विशेषार्थ - एकान्त, विनय, संशय, विपरीत, अज्ञान ये पाँच मिथ्यात्व हैं। पाँच इन्द्रियों और छठे मनके वशीभूत होना तथा पाँच स्थावर और छठे त्रसकी दया नहीं करना बारह अविरत हैं | अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन, क्रोध, मान, माया, लोभ ये सोलह कषाय तथा हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसक वेद ये नौ नोकषाय इस प्रकार पच्चीस कषाय हैं। सत्य, असत्य, उभय, अनुभय रूप चार मनोयोग, सत्य असत्य, उभय अनुभयरूप चार वचनयोग, औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र, कार्माण ये सात काययोग, इस तरह पन्द्रह योग हैं। ये सब सत्तावन उत्तर प्रत्यय हैं ॥७८६ ॥
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आगे मूल प्रत्ययको गुणस्थानों में कहते हैं
स्थानों में मूलप्रत्यय इस प्रकार हैं - मिथ्यादृष्टिमें बन्धके चारों प्रत्यय हैं । सासा - ३० दन आदि तीन में मिध्यात्व के बिना तीन प्रत्यय हैं। देश अर्थात् लेशरूपसे एक असंयमको जो 'दिशति' अर्थात् त्यागता है उसे 'देशैकदेश' या देशसंयत कहते हैं । उसमें भी बन्धके
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