Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
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तीर्थसमुद्घातकेवलिय आनापानपर्य्याप्तियोळु ओदु ३० संज्ञिपंचेंद्रियतिष्यंचरोळयोतयुतानापानपर्य्याप्तियोळ संस्थान संहननसुभगावेययशस्कीत्तिविहायोगतियुग्मचतुष्टयकृत ३६ । १६ भंगंगळु - मय्नूरप्पत्तारु ३० द्वींद्रियत्रींद्रियचतुरिद्रियासंज्ञिगळोळानापानपर्याप्तियोळुद्योत. युतस्थानदोळु प्रत्येकमेरडेरडु भंगंगळागुत्तं विरलू नाल्करोळमें टु भंगंगळवु ३० तीथं रहितकेवलिय भाषापर्य्याप्तियोळ संस्थानषट्क विहायोगतिद्वयस्वरद्वयकृत ६ । ४ । भंगंगळिष्पत्तनात्कु३० मत्तं मनुष्य भाषापर्य्याप्तियोळु संस्थानषट्क- संहननषट्क-सुभगादेययशस्कीतिविहायोगति स्वरमे 'ब युग्मपंचकर्म बिवर ३६ । ३२ । भंगंगळु सासिरद नरवर्तर ३० संज्ञिपंचेंद्रिय ३० दोळुद्योतरहित भाषापर्य्याप्रियोळु मनुष्यनोळे तंते सासिर नूरवर ३० द्वींद्रियत्रींद्रियचतुरिन्द्रियासंज्ञि जीवंगळो भाषापर्य्याप्तियो प्रत्येकमेरर्डरड भंगंगळागल नाल्कोळमें दु १० भंगंगळवु ३० अंतु कूडि त्रिशत्प्रकृतिस्थानदोळ सर्व्वभंगंगळमेरडु सासिरदो भैनू रिप्पत्तों दप्gg तीर्थरहितसमुद्घातकेवलिय भाषापर्य्याप्तियोलु चतुविशति भंगंगळु पुनरुक्तंगळप्पुवु ।
२४
११५२
११५२
८
९५२
३० २९२१
त्रिशतकान्युच्छ्वास पर्याप्तौ तोर्थसमुद्घातकेवलिन्येकं संज्ञिनि प्राग्वत्सोद्योत षट्सप्तत्यग्रपंचशती । द्वित्रिचतुरिद्रियासंज्ञिषु सोद्योते द्वे द्वे भूत्वाष्टौ । भाषापर्याप्तौ तीर्थोन केवलिनः संस्थानविहायोगतिस्वर कृतानि चतुर्विंशतिः । मनुष्ये संस्थानसंह तन सुभगादेययशस्कीर्ति विहायोगतिस्वरकृतानि द्वापंचाशदकादशशती । संज्ञि१५ नोऽपि तथा उद्योतरहितानि भवन्ति । द्वित्रिचतुरिन्द्रियासंज्ञिषु ते द्वे द्वे भूत्वाष्टावित्येकविंशत्य कान्नत्रिशच्छतो ३० तीर्थोनसमुद्घातकेवलिभाषापर्याप्तो चतुर्विंशतिभंगास्ते पुनरुक्ताः ।
२९२१
तीसके स्थान में उच्छवास पर्याप्ति कालमें तीर्थंकर समुद्घात केवलीके एक भंग है । उद्योत सहित संज्ञीके पूर्वोक्त पाँच सौ छिहत्तर भंग हैं। उद्योत सहित दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रियके दो-दो भंग होनेसे आठ भंग हैं । भाषापर्याप्तिकाल में तीर्थरहित २० सामान्य केवलीके छह संस्थान, विहायोगति युगल, स्वरं युगलके चौबीस भंग हैं। मनुष्य में छह संस्थान, छह संहनन, सुभग आदेय, यशःकीर्ति, विहायोगति और स्वरके युगल द्वारा ग्यारह सौ बावन भंग हैं। उद्योत सहित संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचमें भी उसी प्रकार ग्यारह सौ बावन भंग होते हैं । दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञीके दो-दो भंग होनेसे आठ भंग होते हैं। ऐसे तीसके स्थान में १+५७६+८+२४+११५२+११५२+८ = २९२१ २५ उनतीस सौ इक्कीस भंग होते हैं ।
तीर्थरहित समुद्घात केवलीके भाषा पर्याप्ति काल में चौबीस भंग हैं। वे पुनरुक्त हैं क्योंकि पूर्व में कहे भंगोंसे इनमें भेद नहीं है ।
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