Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे अट्ठविहसत्तछब्बंधगेसु अद्वैव उदयकम्मंसा ।
एयविहे तिवियप्पो-एयवियप्पो अबंधम्मि ॥६२८।। अष्टविध सप्त षड् बंधकेष्वष्टैवोदयकमांशाः । एकविधे त्रिविकल्पः एकविकल्पोऽबंधे ॥
अष्टविध सप्तविधषड्विधबंधकरुगळोळु उदयमुं सत्वमुमष्टाष्टविधंगळप्पुवु । एकविधबंधक५ नोळ, त्रिविकल्पमक्कु ते दोडे-एकविधबंध सप्ताष्टविधोदयसत्वमुमेकविधबंध चतुश्चचतुरुदय सत्वमुमितु त्रिविधमक्कु । म बंधदोळु चतुश्चतुरुदयसत्वमेकविकल्पमेयककुं। ई त्रिसंयोगभंगंगळ गुणस्थानदोळ योजिसिदपरु।:--
मिस्से अपव्वजुगले बिदियं अपमत्तवोत्ति पढमजुगं ।
सुहमादिसु तदियादी बंधोदयसत्तभंगेसु ॥६२९॥ मिश्रे अपूर्वयुगळे द्वितीयमप्रमत्तपयंतं । प्रथमद्विकं सूक्ष्मादिषु तृतीयोवयो बंधोदयसत्व.
भंगेषु ॥
बंधोदयसत्वभंगंगळोट द्वितीयविकल्पं मिश्रनोळमपूर्वकरणनोलमनिवृत्तिकरणनोळमक्कु मप्रमत्तपय्यंतं प्रथमद्विविकल्पंगळप्पुवु । सूक्ष्मसांपरायं मोवल्गोंडयोगिकेवलिभट्टारकपर्यंत क्रमादिदं तृतीयादिविकल्पंगळप्पुवु । संदृष्टिः
अष्टविधसप्तविधषड्विधबंधकेषु उदयसत्त्वे अष्टाष्टविधे स्तः । एकविधबन्धके तु सप्ताष्टविधे सप्तसप्तविधे चतुश्चतुर्विधे च स्तः । अबन्धके चतुश्चत विधे स्तः ॥६२८॥ अथ तत्त्रिसंयोगभंगान् गुणस्थानेषु योजयति
तेषु बन्धोदयसत्त्वभंगेषु गुणस्थानं प्रति मिश्रेऽपूर्वानिवृत्तिकरणयोश्च सप्ताष्टाष्टबन्धोदयसत्त्वो द्वितीयभंगः स्यात् । शेषाप्रमत्तांतेषु षट्सु अष्टाष्टबन्धोदयसत्त्वप्रथमभंगो द्वितीयभंगश्च स्यात् । सूक्ष्मसापरायाद्ययोगांतेषु
जिस जीवके मूल प्रकृतियोंका आठ प्रकार, सात प्रकार या छह प्रकारका बन्ध होता २० है उसके उदय और सत्त्व आठ प्रकारका ही होता है। जिसके एक प्रकारका मूल प्रकृति
बन्ध होता है उसके उदय सात प्रकार, सत्व आठ प्रकार अथवा उदय और सत्त्व दोनों सात-सात प्रकार अथवा उदय और सत्त्व दोनों चार-चार प्रकार होते हैं। जिसके एक भी मूलप्रकृतिका बन्ध नहीं है उसके उदय और सत्त्व दोनों चार-चार प्रकारके होते हैं ॥२८॥
ब. ८७६ १ १ १ | उ.८८७४४
स. ८८८८७४४ आगे त्रिसंयोगी भंगोंको गुणस्थानोंमें जोड़ते हैं
उन बन्ध, उदय और सत्त्वके भंगोंमें गुणस्थानोंके प्रति मिश्रमें और अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरणमें सातका बन्ध, आठका उदय और आठका सत्वरूप दूसरा भंग पाया जाता है। मिश्रके बिना शेष मिथ्यादृष्टि आदि अप्रमत्त पर्यन्त छह गुणस्थानोंमें आठका बन्ध, उदय सत्त्वरूप प्रथम भंग और सातका बन्ध, आठका उदय, आठका सत्त्वरूप दूसरा भंग पाया है। सूक्ष्म साम्परायसे अयोगीपर्यन्त गुणस्थानोंमें तीसरे आदि छहका बन्ध, आठका
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