Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
| देवगति
.
म।
उ
मनुष्यगति ० उ०ति | उ०म० दे| उति उ मम ममम मम मममम मदेश दे दे दे। दे। वे | १ | २ | २| १ | २ | २ | १|२|२|१|२२|१| २ | २ | १ | २ | २|
एक्काउस्स तिभंगा संभवआऊहि ताडिदे णाणा।
जीवे इगि भवभंगा रूऊण गुणूणमसरिच्छे ॥६४५॥ एकायुषस्त्रिभंगाः संभवायुभिस्ताडिते नानाजीवे एक भव भंगा रूपोन गुणोनमसदृशे ॥
ई रचनेयोनोंददायुष्यंगळगे मूरु मूरु भंगंगळप्पुरिदं तत्तद्गतिसंभवायुष्यंगळिदं गुणिसुत्तं विरलु नानाजीवदोळेकभवभंगंगळ संख्येगळप्पुववरोळ सवृशभंगापेक्षयोळ रूपोनगुणकारोन ५ प्रमित भंगंगळप्पुर्व ते दोडे नारकरुगळ्गे ओंदु तिर्यगायुष्यबंधक्के मूर भंगंगळागुत्तं विरला गतियोळु बंधसंभवायुष्यंगळु तिर्यग्मनुष्यायुष्यंगळे रडेयप्पुरिदमररिदं गुणिसिदो ३ । २। डारु भंगंगळप्पुवु ६। अवरोळपुनरुक्त भंगंगळे नित दोडे आ सर्व गंगळोळु रूपोन गुणोन ६-२। प्रमितंगळग्दप्पुवु । ५। तिर्यग्गतियोल त्रिभंगमं संभवायुष्यंगळु नाकरिवं गुणिसिवोडे ३।४। पन्नेरडु भंगंगळप्पुवु । १२ । मनुष्यगतियोळमते पन्नेरडु भंगंगळप्पुववरोळु १२। रूपोन १० गुणोनंगळादोडे-१२।४ १२ । ४ तिर्यग्गतियोळं मनुष्यगतियोळमसवृशभंगंगळो भत्तु मो भत्तमप्पुवु ।९।९॥ देवगतियोळु त्रिभंगंगळं संभवायुष्यंगाळदं गुणिसिदो ३।२। डारु
.० भंगळप्पु ६ ववरोळ रूपोनगुणकार प्रमितंगळ २। कळेदोर्ड पंचभंगंगळप्पुवु । ५ । संदृष्टि :
_
0
ते एकैकायुषस्त्रयस्त्रयो भंगा विवक्षितगतो बध्यमानत्वेन सम्भवदायुःसंख्यया गुण्यन्ते तदा नानाजीवेष्वेकैकभवभंगा भवन्ति । देवनारकगत्योः प्रत्येक षट् । मरतिर्यग्गस्योः प्रत्येकं द्वादश द्वादशामो । असद- १५ शेष्वपुनरुत्तेषु विवक्षितेषु रूपोनेन सम्भवदायुःसंख्यागुणकारेणोना भवन्ति । देवनारकगत्योः प्रत्येक पंच पंच ।
मुज्यमान दो आयुकी सत्ता है उसे उपरतबन्ध कहते हैं। इस प्रकार एक-एक आयुके तीन भंग होते हैं ॥६४४॥
इन एक-एक आयुके तीन-तीन भंगोंको विवक्षित गतिमें जितनी आगामी आयुका बन्ध सम्भव है उनकी संख्यासे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतने नाना जीवोंको अपेक्षा २० एक-एक भव सम्बन्धी भंग होते हैं। सो देव और नरकगतिमें तिर्यच और मनुष्य दो ही आयका बन्ध सम्भव होनेसे दोसे तीन भंगोंको गुणा करनेपर छह-छह भंग होते है । मनुष्य और तियश्चगतिमें चारों आयका बन्ध सम्भव है अतः चारसे तीन भंगोंको गुणा करनेपर बारह-बारह भंग होते हैं। असदृश अर्थात् अपुनरुक्त भंगोंकी विवक्षा होनेपर बध्यमान आयुकी संख्यारूप गुणकारमें एक घटानेपर जो प्रमाण रहे उतना पूर्वोक्त भंगोंमेंसे घटानेपर २५ अपुनरुक्त भंग होते हैं। सो देवगति नरकगतिमें बध्यमान आयु दो गुणकार था उसमें एक
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International