Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
कर्णावृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
अपुनरुक्तभंगंगळु नरकादिचतुग्र्गतिगळोळु क्रर्मादिदं पंच नव नव पंच प्रमितंगळप्पुववनितुं मिथ्यादृष्टियोवु । मि ।५।९।९।५ । ई मिथ्यादृष्टिय भंगंगळोळु नरकायुबंधभंगंगळं कळेदोडे आ भंगंगळु सासादननोळप्पुवु । सा ५। ८। ८।५ ॥
सव्वाउबंधभंगेणूणा मिस्सम्मि अयदसुरणिरये ।
रतिरिये तिरियाऊ तिन्हा उगबंधभंगूणा || ६४७॥
सर्वायुध भंगेनोनाः मिश्र असंयतसुरनारके नरतिरश्चि तिर्य्यगाथुस्त्रितया युब्बंधगोनाः ॥
मिश्रगुणस्थानदो सर्व्वायुब्बंधभंगरहित भंगंगळप्पूवु । मिश्र । ३ । ५ । ५ । ३ ॥ सुरनारकासंयतरोळं नरतिर्य्यगसंयतरोळं क्रर्मादिदं तिर्य्यगायुब्बंधभंगंगळु नरतिग्मतुष्यायुष्यबंधभंगंगळ रहितमाद भंगंगळप्पुवेक 'दोडे 'उवरिमछण्हं च छिदी सासणसम्मे हवे नियमा' १० ये दितु तिर्य्यग्मनुष्यसासादननोळे व्युच्छित्तियादुवप्युदरिदं । मिथ्यादृष्टियोळ नरकायुष्यं निदुदु सासादननोळु सुरनरकगतिजरोलु तिर्घ्यगायुष्यमुं तिर्घ्यरमनुष्यगतिजरुगळपेक्षेयिदं मनुष्यतिगायुष्यंगळं व्युच्छित्तियादुवप्पुदरिदं अबंधायुग्भंगमो दोढुं तिर्य्यगायुरूपरतभंगमों दोढुं मनुष्याति म
युब्बंधोपरतभंगंगळे रर्डरडुमंतु नालकुनालकु भंगंगळप्पुवु । ना । सु । असं । ४ । ० । ० ४ । तिय्यंग्मनुष्यासंयतनोळ अबंधायुष्य भंगमों दोढुं नरकायुष्योपरतभंगमों दो दु तिर्य्यगायुष्योपरत - १५ बंगद मनुष्यायुष्योपरतबंधभंगमों दो दु देवायुष्य बंधोपरतभंगंगळे रडेरडुमंताशरु भंगंग
०
न
ळवु । ० । ६ । ६ । । कूडि असंयतनास्त्रिसंयोग भंगंगळ संदृष्टि :- ४ । ६ । ६ । ४॥
९८७
०
ते असदृशभंगा गुणस्थानेषु मिथ्यादृष्टौ नरकादिगतिषु क्रमेण पंच नव नव पंच भवन्ति । सासादने ते नरकायुर्बन्ध भंगेनोनाः पंचाष्टाष्टपंच भवन्ति ॥ ६४६॥
मिश्र ते सर्वायुर्वन्त्रभंगे नोनास्त्रयः पंव पंच त्रयो भवन्ति । असंयते सुरनारकयोस्तिर्यगायुर्वन्ध भंगेनोना- २० श्चत्वारश्चत्वारः तयोस्तस्य सासादने छेदात् । नरतिरश्चोस्तु नरकतिर्यग्मनुष्यायुबन्धभंगेनोनाः षट् षट् तयोर्नायुबन्धस्य मिथ्यादृष्टी, नरतिर्यगायुबन्धयोः सासादने च छेदात् ||६४७ ॥
अपुनरुक्त भंग मिध्यादृष्टि गुणस्थानमें नरक आदि गतियों में क्रमसे पांच नौ-नौ पाँच जानना । दूसरे सासादन गुणस्थान में मनुष्य तिर्यंच में आयुबन्धकी अपेक्षा जो चार भंग कहे थे उनमें से नरकायुक्का बन्धरूप भंग न होनेसे नरकादि गतिमें क्रमसे पाँच आठ- २५ आठ पाँच भंग होते हैं ||६४६ ||
Jain Education International
मिश्र गुणस्थान में जो आयुबन्धकी अपेक्षा भंग कहे गतियों में क्रमसे तीन, पाँच, पाँच, तीन भंग होते हैं । आयुबन्धकी अपेक्षा तियंवायुका बन्धरूप भंग नहीं है तिर्यवायुकी बन्धव्युच्छित्ति सासादन में हो जाती है । तथा मनुष्यगति तियंचगतिमें ३० आयुबन्धकी अपेक्षा नरक तियंच मनुष्यायुके बन्धरूप तीन भंग नहीं हैं । अतः छह-छह
थे वे सब घटानेपर नरकादि असंयत में देवगति नरकगति में अतः चार भंग हैं क्योंकि
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org