Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
प्रतरद्वयलोकपूरणंगळोळु काम्मैणशरीरकालमक्कुर्म दरिवल्पडुगुं मूलशरीरप्रवेशप्रथमसमयं मोडगोंडु संज्ञिपंचेंद्रियपर्य्याप्तनोळे तंते पर्य्याप्तिगळे परिपूर्णंगळवु ।
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९३०
दंड कवाट
३० ३१
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प्रतर
२०
लोकपू. २०
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भाषा
उच्छ्वा
इंद्रि
शरीर
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प्रका क। मि
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ज्ञातव्यः । मूलशरीरप्रथमसमयात्संज्ञिवत्पर्याप्तयः पूर्यन्ते -
दं ३० ३१
क २६ २७
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लो २० २१
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अनंतरं नामकर्मोदयस्थानंगळगुत्पत्तिक्रममं गाथाचतुष्टर्याददं पेदपरु :
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५ ||५८७ ॥ अथ नामोदयस्थानानामुलत्तिक्रमं गाथाचतुष्टयेनाह
रूप करने तथा समेटने रूप दोमें औदारिक मिश्रशरीर काल है । प्रतर रूप करने और समेटने में तथा लोकपूरणमें कार्मणकाल है । इस तरह फैलाते समय तो तीन ही काल हैं और समेटते में मूलशरीर में प्रवेश करनेके प्रथम समयसे लगाकर संज्ञी पंचेन्द्रियकी तरह क्रम से पर्याप्त पूर्ण करता है अतः पाँचों काल होते हैं ||५८७ ||
आगे नामकर्मके उदय स्थानोंका क्रमसे उत्पन्न होनेका विधान चार गाथाओंसे कहते हैं
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