Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका २६ तीर्थरहितसमुद्घातकेवळिय शरीरमिश्रकालबोळु संस्थानषट्कदिंदमारु २६ लब्ध्यपर्याप्त रुगळ शरीरमिश्रकालदोळारु २६ पृथ्वीकायबादरशरीरपथ्याप्तियोळ आतपोद्योतयुतद्विस्थानंगकोळु प्रत्येकमरडेरडु भंगंगळप्पुरिदं नाल्कप्पुवु २६ अप्कायप्रत्येकवनस्पतिगळ बावरंगळ शरीरपर्याप्तियोलं प्रत्येकमेरडरडु भंगंगळप्पुरिवं नाल्कु २६ पृथ्व्यप्तेजोवायुबादरोच्छ्वासनिःश्वासपर्याप्तियोळ प्रत्येकवनस्पतियोळप्रत्येकमेरडेरडु भंगंगळप्पुरिदं पत्तु .२६ पृथ्व्यप्तेजोवायुगळ ५ सूक्ष्मंगळोळानापानपर्याप्तियोळ साधारणवनस्पतिबादरसूक्ष्मंगळोळनापान पर्याप्तियोळ प्रत्येकमेकैकभंगंगळप्पुरिंदमारु २६ अंतु षड्विशति प्रकृतिस्थानदोळु सर्वभंगंगळ मरुनूरिप्पतप्पुवु । २६ सप्तविंशत्युदयस्यानदोळ भंगंगळ पेळल्पडुगुं :
सतीर्थसमुद्घातकेवलिय शरीरमिश्रकालदोनोंदु २७ देवाहार नारकरगळ शरीरपर्याप्तियोळ प्रत्येकमेकैकमागलु मूरु २७ पृथ्वीकायबादरदोज़ानापानपर्याप्तियोळातपोद्योतयुतस्थान- १० द्वयदोळ नाल्कु २७ अप्कायिकप्रत्येकवनस्पतिगळ बादरंगळोळानापानपर्याप्तियोल प्रत्येकमेरडे
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केवलिनः संस्थानषटकेन षट् । लब्ध्यपर्याप्तेष्वपि षट् । शरीरपर्याप्ती वादर पृथ्वीकायस्यातपोद्योतस्यानद्वये द्वे द्वे भूत्वा चत्वारि । बादराकायप्रत्येकयो? द्वे भूत्वा चत्वारि । उच्छ्वासपर्याप्ती बादरपृथ्व्यप्तेजोवायुप्रत्येकेषु द्वे द्वे भूत्वा दश । सूक्ष्मपृथ्व्यप्तेजोवायूभयसाधारणेष्वेकैकं भूत्वा षडिति विंशत्यग्रषट्छती २६ ।
६२० सप्तविंशतिकानि सतीर्थसमुद्घातशरीरमिश्रकाले एक देवाहारकनारकशरीरपर्याप्तावेककं भूत्वा १५ वीणि । आनापानपर्याप्ती बादर पृथ्वीकायस्यातपोद्योतस्थानयो· द्वे भूत्वा चत्वारि । बादरा प्रत्येकयो द्वे
होते हैं। मिलकर पांच सौ छिहत्तर हुए । तीर्थरहित सामान्य समुद्घात केवलीके छह संस्थानोंके बदलनेसे छह भंग होते हैं। छह लब्ध्यपर्याप्तकोंके एक-एक भंग होनेसे छह होते हैं । शरीर पर्याप्ति कालमें बादर-पृथ्वीकायके आतप या उद्योतपनेसे दो स्थान हैं। उनमें यशःकीर्तिके युगलसे दो-दो भंग होनेसे चार होते हैं। बादर, अपकाय, प्रत्येक वनस्पतिमें २० भी दो-दो भंग होनेसे चार हुए। उच्छ्वास पर्याप्तिकालमें बादर पृथ्वी, अप, तेज, वायु प्रत्येकमें यशःकीर्तिके युगल द्वारा दो दो भंग होनेसे दस होते हैं । सूक्ष्म पृथ्वी, अप, तेज, वायु, सूक्ष्म बादर साधारणमें एक-एक भंग होनेसे छह हुए । इस प्रकार छब्बीसके स्थानमें ८+ ५७६ +६+६+४+४+१०+६= ६२० छह सौ बीस भंग होते हैं।
सत्ताईसके स्थानमें तीर्थंकर समुद्घात केवलीके शरीर मिश्रकालमें एक भंग होता है। २५ देवनारक आहारकके शरीर पर्याप्तिकालमें एक-एक भंग होनेसे तीन भंग होते हैं । उच्छ्वास पर्याप्तिकालमें बादर-पृथ्वीकायके आतप-उद्योतसे दो स्थान, उनमें दो-दो भंगसे चार भंग
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