Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
विरलितु विग्रहगतियकार्म्मणशरीरदोळे एकजीवनोळेकसमयदोळु युगपदेकविंशतिप्रकृतिगळुदयितं विरलु नारकतिर्य्यग्मनुष्यदेवगतिजहगळ प्रत्येकमेकविंशतिप्रकृत्युदयस्थान नक्कुम विग्रहगतियोळल्लवेल्लियुं संभविसदे के दोडानुपूर्व्य नामकम्र्मोदययुतमप्युदरिदं । २१ । न । ति ।
| दे ॥ मत्तमनुपूर्व्यादयरहितमाद विशतिप्रकृतिगळु मौदारिकवैक्रियिकाहारकशरी रंगळोन्यतरमुं संस्थानबटुकदोळन्यतममुं प्रत्येक साधारणशरी रहयद्वयदोळन्यतरमुं उपघातमुमितु चतुव्विशति- ५ प्रकृतिगळे केंद्रियजीवन शरीरमिश्रकाल दोळल्लदेल्लियुमुदय मिल्लेके बोर्ड एकेंद्रियं गल्लंगोपांगसंहननोदयंगळिल्लपुरिदं । मत्तमेकेंद्रियजीवन शरीरपर्य्याप्तियोल परघातमं कूडिदोर्ड पंचविंशतिप्रकृतिस्थानोदयमक्कुं । २५ ए । मत्तमा चतुविशतिप्रकृतिगळोल आहारकशरीरं विवक्षितमादोर्डआहारकांगोपांगमं कूडिदोडाहारकशरीर मिश्र दोळं पंचविशति प्रकृतिस्थानोदयमक्कुं । २५ । विशेष मनुष्यमत्तमा चतुव्विशतिप्रकृतिगळोळ वैक्रिधिकशरीरं विवक्षितमादोर्ड वैक्रियिकांगोपांग १० कूडुत्तं विरल देवनारकरुगो शरीर मिश्रकालदोळु पंचविशति प्रकृतिस्थानोदयमक्कुं । २५ ॥ दे। ना । शरी० मिश्र । मत्तमेकेंद्रियंगळ शरीरपर्थ्याप्तिय पंचविंशतिप्रकृत्युदयस्थानवो आतपनाम मेनुद्योतनाममं कुडुत्तं विरलेकेंद्रियंगळ शरीरपर्थ्याप्तियोल षड्विंशति प्रकृतिस्थानोदय मुमक्कं । २६ । ए । प । आ । उ । अथवा आतपोद्योतंगळं बिट्टुच्छ्वासमं कूडुत्तं विरले केंद्रियंगळ्गुच्छ्वासनिश्वासपर्याप्तियो ं षड्विंशतिप्रकृतिस्थानोदयमक्कं । २६ । ए । प । उ । मत्तमा चतुव्विशति- १५
वानुपूर्व्यमपनोयोदारिकादित्रिशरीरेषु षट्संस्थानेषु प्रत्येकसाधारण पोश्च कैकस्मिन्नुपघाते च निक्षिप्ते चतुर्विंशतिकं तत्तु एकेन्द्रियाणां शरीरमिश्रयोगे एवोदेति नान्यत्र तेषामंगोपांग संहननोदयाभावात् । पुनः एकेन्द्रियस्य शरीरपर्याप्तौ तत्र परघाते युते इदं २५ वा विशेष मनुष्यस्याहारकशरीर मिश्रकाले तदंगोपांगे युते इदं २५ । वा देवनारकयोः शरीर मिश्रकाले वैकियिकांगोपांगे युते इदं २५ ।
पुनः एकेन्द्रियस्य पंचविशति के तच्छरीरपर्याप्तौ आतपे उद्योते वा युते इदं २६ । वा तस्यैत्रोच्छ्वा २०
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आनुपूर्वियों में से एक इस तरह इक्कीस प्रकृतिरूप स्थान होता है । इसका उदय कार्मणशरीर सहित चारों गति सम्बन्धी विग्रह गतिमें होता है, अन्यत्र नहीं, क्योंकि यह स्थान आनुपूर्वी सहित है । इसमें से आनुपूर्वीको घटाकर औदारिक आदि तीन शरीरों में से एक, छह संस्थानों में से एक, प्रत्येक साधारण में से एक और उपघात इन चारोंको मिलानेपर चौबीस प्रकृतिरूप स्थान होता है। इस स्थानका उदय एकेन्द्रियोंके अपर्याप्त दशामें शरीर मिश्र २५ योगमें ही होता है, अन्यत्र नहीं; क्योंकि एकेन्द्रियों में अंगोपांग और संहननका उदय नहीं होता। इसमें परघात मिलानेपर एकेन्द्रियके शरीरपर्याप्तिकालमें उदययोग्य पच्चीसका स्थान होता है । अथवा इसमें आहारक अंगोपांग मिलानेपर विशेष मनुष्य के आहारक शरीरके मिश्रकाल में उदययोग्य पच्चीसका स्थान होता है । अथवा वैक्रियिक अंगोपांग मिलानेपर देव नारकीके शरीर मिश्रकालमें उदययोग्य पच्चीसका स्थान होता है। इस तरह ३० पच्चीसके तीन स्थान होते हैं ।
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एकेन्द्रियके उदययोग्य पच्चीसके स्थान में आतप या उद्योत मिलानेपर एकेन्द्रियके शरीरपर्याप्तिकालमें उदययोग्य छब्बीसका स्थान होता है । अथवा एकेन्द्रियके पच्चीसके
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