Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कणाटवृत्ति जोवतत्वप्रदीपिका केवलिय शरीरपर्याप्तियोळमा अष्टाविंशतिप्रकृतिस्थानोदयमक्कं । २८ । सा। के।। परि। मत्तमा चतुविशति प्रकृतिगळोळु तिर्यग्गतित्रसंगळु विवक्षितमागुत्तं विरलु अंगोपांगसंहननपरघातविहायोगतिगलं कूडुत्तं विरलु द्वौद्रियत्रींद्रियचतुरिद्रिय पंचेंद्रियजीवंगळ शरीरपाप्तियोळष्टाविंशतिप्रकृतिस्थानोदयमकं । २८ ॥ द्वि । त्रि। च । पं। श. उ. परि ॥ मत्तमा चतुर्विशतिप्रकृतिगळोळु आहारकांगोपांगपरघातप्रशस्तविहायोगतियुच्छ्वासगळं कूडुत्तं विरलु आहारक ५ ऋद्धिप्राप्त प्रमत्तनोळु आहारकशरीरोच्छ्वासपर्याप्तियोळष्टाविंशतिप्रकृतिस्थानोदयमक्कु २८ । प्र. आ. श. उ परि। मत्तमा चतुविशतिप्रकृतिगळोळ नरकदेवगतिगळ विवक्षितंगळादोडे वैक्रि. यिकांगोपांगपरघाताविरुद्धविहायोगतियुच्छ्वासमुमं कूडुत्तं विरलु देवनारकोच्छ्वासपर्याप्तियोळ अष्टाविंशतिप्रकृतिस्थानोदयमक्कुं । २८ । दे । ना। उ. परि ॥ मत्तमा सामान्यमनुष्यन शरीरपर्याप्तिय अष्टाविंशतिप्रकृतिगळोच्छ्वासमं कूडुत्तं विरलुच्छ्वासनिश्वासपर्याप्तियोळु सामान्य- १० स्योच्छवासपी परवाते आतपोद्यातकतरस्मिन्नच्छवासे च यते इदं २७ ॥
पुनः तत्रैव सामान्यमनुष्यस्य मूलशरीरप्रविष्टसमद्घातसामान्यकेवलिनः द्वित्रिचतुष्पंचेन्द्रियाणां च शरीरपर्याप्ती अंगोपांगसंहननपरधानाविरुद्धविहायोगतिषु युतास्विदं ॥२८॥ वा प्राप्ताहारकर्धेस्तच्छरीरोच्छवासपर्याप्त्योस्तदंगोपांगारघातप्रशस्तविहायोगत्युच्छवासेषु युतेष्विदं ॥२८॥ वा देवनारकयोहच्छ्वासपर्याप्ती वैक्रियिकांगोपांगपरघाताविरुद्ध विहायोगत्युच्छ्वासेषु युतेष्विदं ॥२८॥ पुनः तत्सामान्यमनुष्याष्टा- १५ विशतिके तस्य च मूलशरीरप्रविष्टसमुद्घातसामान्यकेवलिनश्चोच्छ्वासपर्याप्ती उच्छ्वासे युते इदं ॥२९॥ वा तच्चतुर्विशतिके द्वित्रिचतुष्पंचेन्द्रियाणां शरीरपर्याप्तावुद्योतेन सम, उच्छवासपर्याप्ती च उच्छवासेन समं अंगोपांगसंहननपरघातविहायोगतिषु युतास्विदं ॥२९॥ वा समुद्घातकेवलिनः शरीरपर्याप्तावंगोपांगसंहननतथा उच्छवास ये तीन मिलनेपर एकेन्द्रियके उच्छ्वास पर्याप्तिमें उदययोग्य सत्ताईसका स्थान होता है । ऐसे सत्ताईसके चार स्थान होते हैं।
चौबीसके स्थानमें औदारिक अंगोपांग, एक संहनन, परघात, यथायोग्य विहायोगति ये चार मिलनेपर सामान्य मनुष्य या मूल शरीरमें प्रवेश करता समुद्घातगत सामान्य केवलो या दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रियके शरीर पर्याप्तिमें उदययोग्य अठाईसका स्थान होता है। अथवा चौबीसमें आहारक अंगोपांग, परघात, प्रशस्त विहायोगति, उच्छ्वास ये चार मिलनेपर आहारक ऋद्धिसे सम्पन्न प्रमत्तके आहारक शरीरकी उच्छ्वास २५ पर्याप्तिमें उदययोग्य अठाईसका स्थान होता है। अथवा चौबीसमें वैक्रियिक अंगोपांग, परघात, यथायोग्य विहायोगति, उच्छ्वास ये चार मिलानेपर देव नारकीके उच्छ्वास पर्याप्ति में उदययोग्य अठाईसका स्थान होता है। ऐसे तीन अठाईसके स्थान हुए।।
सामान्य मनुष्य या समुद्घात केवलीके अठाईसके स्थानमें उच्छ्वास प्रकृति मिलनेपर सामान्य मनुष्य या मल शरीरमें प्रवेश करते समदघात केवलीके उच्छवास पर्याप्ति में उदय- ३० योग्य उनतीसका स्थान होता है। अथवा चौबीसमें औदारिक अंगोपांग, एक संहनन, परवात, एक विहायोगति, उद्योत मिलानेपर दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय के शरीर पर्याप्तिमें उदययोग्य उनतीसका स्थान होता है। अथवा चौबीसमें एक अंगोपांग, एक संहनन, परघात, एक विहायोगति और उच्छ्वास मिलनेपर दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रियके उच्छ्वास पर्याप्तिमें उदययोग्य उनतीसका स्थान होता है। अथवा ३५
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