Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डै
देवनारकासंयतसम्यग्दृष्टिगळु तीर्थयुतमनुष्यत्रिंशत्प्रकृतिस्थानमं कटुत्तलु मृतरागि पंचकल्याणभाजन तोत्थंकर परमदेवासंयतसम्यग्दृष्टिगळु जिनजननीगर्भक्कवतरिसुत्तं तीर्थयुतदेव नवविंशतिप्रकृतिस्थानमं कटुवरल्लि अल्पतरभंगंगळरुवत्त नाल्कप्पुवंतु द्वासप्तत्यल्पतर भंगंगळ संपतरोळप्पुवु । ७२। तीर्थरहितमनुष्यगतियुत नविंशति प्रकृतिस्थानमं कटुत्तं देवगतियुताष्टा. विशति प्रकृतिस्थानमुमं कटुगुमल्लि चतुःषष्टियल्पतर भंगंगळप्पुवा भंगंगळ पुनरुक्तंगळप्पुर्वते. वोडालन अल्पतरंगळोलु पेळल्पटुवप्पुरिदं । संदृष्टि :असंयतन भुजाकारंगळु असंयतन अल्पतरंगळ असंयत पुनरुक्तं | असंयत युति ३६८६४
भु ३६९९२ म ३०
अल्पतर ७२ दे २९
अवस्थि ३७०६४
du
।
म ३०
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म २१
म
४६००
अनंतरं प्रमादरहितरोळु भुजाकारबंधभंगंगळं पेळ्दपर :
देवजुदेक्कट्ठाणे णरतीसे अप्पमत्त भुजगारा।
पणदालिगिहारुमये भंगा पुणरुत्तगा होति ।।५७६॥ देवयुतकस्थाने नरत्रिंशत् स्थाने अप्रमत्त भुजाकाराः। पंचचत्वारिंशदेकहारोभये भंगाः पुनरुक्ता भवंति ॥
तीर्थयुतमनुष्यत्रिशत्कं बध्नन्मृत्वा तीर्थकरत्वेन जननीगर्भेऽवतीर्य तीर्थयुतदेवनविंशतिकं बध्नाति तदा चतु:षष्टिः। एवं द्वासप्ततिरल्पतरभंगा असंयते भवन्ति । तोर्थोनमनुष्यगतिनवविंशतिक बध्वा देवगत्यष्टाविंशतिक
बघ्नतः चतुःषष्टिरल्पतरभंगास्ते पुनरुक्ताः प्राग्मिथ्यादृष्टावुक्तत्वात् ॥५७५॥ अथाप्रमतादिषु भुजाकारबन्ध१५ भंगानाह
मरते समय जब नरक गतिमें जानेके अभिमुख हुआ तो एक अन्तर्मुहूर्त के लिए मिथ्यादृष्टि होकर नरकगति सहित अठाईसका बन्ध करता है उसका एक भंग है। दोनोंको परस्परमें गुणा करनेपर आठ भंग हुए । पुनः देव या नारकी असंयत तीर्थकर मनुष्यगति सहित तीस
को बाँधे तो उसके आठ भंग हुए। पीछे मरकर तीर्थंकरके रूपमें माताके गर्भ में अवतरण २० करके तीर्थंकर देवसहित उनतीसको बांधता है उसके भी आठ भंग हुए। इनको परस्परमें
गुणा करनेपर चौंसठ हुए। दोनोंको जोड़नेपर बहत्तर अल्पतर भंग असंयतमें होते हैं। तथा तीर्थकर रहित मनुष्यगति सहित उनतीसको बाँधकर पीछे देवगति सहित अठाईसको बाँधनेपर चौंसठ भंग पुनरुक्त है, क्योंकि मिथ्यादृष्टिके भंगोंमें आ जाते हैं । इससे यहाँ नहीं कहा ॥५७५॥
आगे अप्रमत्त आदिमें मुजाकार कहते हैं
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